‘राख का हर कण मेरी गर्मी से गतिमान है. मैं एक ऐसा पागल हूं. जो जेल में भी आजाद है’ भगतसिंह एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि युवाओं के लिए आज भी एक जुनून एक जज्बा है.
23 मार्च 1931 का दिन, जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी दे दी गई थी. जरा सोचिए, उस स्थिति के बारे में जब आपको अपने ही घर में कोई बाहरी व्यक्ति आकर सजा दे देता है और आप लाख प्रयास के बाद भी स्थिति पूरी तरह नहीं बदल पाते. कुछ ऐसा ही हुआ भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव जैसे उन अनगिनत क्रांतिकारियों के साथ जिन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. उनके जीवन के ना जाने कितने ही ऐसे प्रसंग है, जो हम लोगों तक पहुंच भी नहीं पाए.
ऐसा ही प्रसंग है भगत सिंह की जिंदगी से जुड़ा हुआ. जब उन्हें सुखदेव ने ऐसी बात कह दी थी, जिससे उनका मन भारी हो गया था.
लाहौर कॉलेज में भगत सिंह के साथ पढ़ने वाली लड़की
बात उन दिनों की है, जब भगत सिंह लाहौर कॉलेज में पढ़ा करते हैं. यहां पर उनके साथ पढ़ने वाली एक लड़की उन्हें पसंद किया करती थी. भगत सिंह उन दिनों के क्रांतिकारी दल का हिस्सा थे. वो लड़की ने दल से प्रभावित होकर उसमें शामिल हो गई. जब ब्रिटिश असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई जा रही थी, तो किसी दूसरी योजना को अंजाम देने के लिए भगत सिंह ने बम फेंकने वाले लोगों में अपना नाम नहीं दिया. ये देखकर उनके साथ और करीबी मित्र ने उन्हें छेड़ते हुए कहा ‘भगत को अब अपनी मौत का डर होने लगा है इसलिए भगत अपना नाम नहीं दे रहा है’.
इस बात से भारी हो गया भगत सिंह का मन
मजाक में ही कही गई इस बात से भगत सिंह आहत हो गए. उन्होंने ये सुनते ही जबर्दस्ती अपना नाम बम फेंकने वाले मिशन में शामिल कर लिया. असल में बम फेंकने के बाद अदालत में अपनी बात रखने के गिरफ्तारी देनी थी. जिससे अदालत में पेशी के दौरान वो अपनी बात और देश के नाम संदेश को सबके सामने रख सके.
इस चिट्ठी से मिलता है इस घटना का प्रमाण
8 अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकने से पहले 5 अप्रैल को भगत ने सुखदेव को एक पत्र लिखा था, जिसे शिव वर्मा ने उन तक पहुंचाया था. 13 अप्रैल को जब सुखदेव गिरफ्तार हुए तो ये खत उनके पास मिला और बाद में कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया गया. जिससे ये साबित हो गया कि बम फेंकने वालों में भगत सिंह का नाम भी था. माना जाता है इस खत को अदालत ने एक सरकारी दस्तावेज के तौर पर अपने पास रख लिया था.
इस चिट्ठी में उस घटना के साथ प्रेम के प्रति भगत सिंह ने रखा नजरिया
1000-1500 शब्दों से ज्यादा लिखी इस चिट्ठी की मुख्य बातें हैं ’अनेक मधुर स्मृतियां और अपने जीवन की सब खुशियां होते हुए भी एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझा और मुझ पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाया, कमजोरी का. आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं. पहले से कहीं अधिक. आज मैं महसूस करता हूं कि वो बात कुछ भी नहीं थी, एक गलतफहमी थी. मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन समझा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी. मैं कमजोर नहीं हूं. अपनों में से किसी से भी कमजोर नहीं.
आखिर में, भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों में से एक विचार- ‘बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती. क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है’ …Next
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