‘दुनिया के लिए जीते थे तो सारी दुनिया दोस्त बनकर साथ थी. जरा-सा अपने बारे में क्या सोच लिया, सारी दुनिया दुश्मन बन गई.’
हम में से कई लोगों की जिंदगी की कहानी ऐसी ही है. जब हम दूसरों की जरूरतों को पूरा करते हुए जीते हैं तो सभी की नजरों में महान बन जाते हैं, लेकिन जिस दिन हम अपने बारे में सोचने लग जाते हैं. पूरी दुनिया की नजरों में चुभना शुरू हो जाते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है ‘आयरन लेडी’ माने जाने वाली इरोम शर्मिला की. जिन्होंने 16 साल तक देश के लिए ऐसी लड़ाई लड़ी. जिसके बारे में आधे से ज्यादा लोग जानते भी नहीं थे. इन 16 सालों में इरोम ने इतना कुछ सहा है जिसकी कल्पना तक हम और आप नहीं कर सकते. इन 16 सालों में उनके संघर्ष में छुपी है उनकी एक ऐसी प्रेम कहानी, जिसके सामने आते ही उनके त्याग और बलिदान को भुला दिया गया. आइए, हम आपको बताते हैं इरोम की ये मौन प्रेम कहानी.
इस वजह से शुरू किया था अनशन
इरोम ने 4 नवम्बर 2000 को अपना अनशन शुरू किया था. इस उम्मीद के साथ कि 1958 से अरूणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नागालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू कश्मीर में लागू आर्म्स फोर्स स्पेशल पावर एक्ट को हटवाने में कामयाब हो सकेंगी.
16 साल तक चली लंबी लड़ाई
इरोम ने कुछ भी न खाने का फैसला लिया था. लेकिन उनकी गिरती सेहत को देखते हुए डॉक्टरोंं, समाजसेवियों ने उन्हें नेजल ट्यूब से जबर्दस्ती लिक्विड खाना खिलाया. अनशन के दौरान ही उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया. जब उन्होंने अनशन की शुरुआत की थी तो उनकी उम्र 28 साल थी.
ऐसे शुरू हुई उनकी प्रेम कहानी
भारतीय मूल के ब्रितानी नागरिक डेसमंड कूटिन्हो इरोम की जिदंगी में ऐसे समय में आए, जब वो दुनिया से अलग-थलग इम्फाल के एक अस्पताल में कई सालों से बंद थीं. ‘बर्निंग ब्राइट-इरोम शर्मिला’ पढ़ने के बाद डेसमंड ने उन्हें पहली बार चिट्ठी लिखी. चिट्टियों से बातों का सिलसिला शुरू हो गया. बर्निंग ब्राइट में लिखा गया था कि इरोम को पुस्तकों का शौक है. इस बात को समझते हुए डेसमंड ने उन्हें तोहफे में अस्पताल के पते पर किताबें भेजा करते थे. उस समय इरोम ज्यादातर लोगों से कटी हुई थीं क्योंकि सरकार ने उनसे मिलने को लेकर कड़ी शर्तें लगा रखी थीं. ऐसे में जब आप सबसे कटे हैं और कोई आपका साथ दे रहा है तो जाहिर-सी बात है कि दोनों के बीच एक रिश्ता तो बनेगा ही. इरोम और डेसमंड का ये रिश्ता वक्त के साथ और भी मजबूत होता गया.
इस वजह से मणिपुर के लोगों को होने लगा रिश्ते पर एतराज
इरोम ने जब 16 साल के अनशन को निराश होकर खत्म करने की घोषणा की, तो ज्यादातर लोग इरोम के इस फैसले से खुश दिखे लेकिन ये खुशी उस वक्त नाराजगी में बदल गई, जब इरोम ने डेसमंड से शादी करने की इच्छा जताई. इरोम की शादी के फैसले पर मणिपुर के वो लोग जिन्होंंने 16 सालों तक उनका साथ दिया, वो लोग अचानक उनकी आलोचना करने लगे. किसी को भी एक गैर-मणिपुरी से शादी करने की बात रास नहीं आ रही थी.
घरवालों ने भी दिखाई नाखुशी
इरोम की प्रेम कहानी पर नाखुश घरवालों ने ये तक कह डाला कि इरोम अपने उद्देश्य से भटक चुकी हैं. अगर वो परिवारिक सुख में पड़ गई तो देशसेवा नहीं कर पाएंगी. उनकी शादी का कोई औचित्य नहीं है. शादी उनकी मुहिम को कमजोर कर देगी.
अपने फैसले पर कायम है इरोम
‘
मणिपुर में पुराना है बाहरी निवासी का मुद्दा
मणिपुर में किसी बाहरी व्यक्ति को राज्य के किसी भी मामले में हस्तक्षेप नहीं करने दिया जाता. यहां तक कि समाज में भी बाहरी लोगों को तिरछी नजरों से ही देखा जाता है. बाहरी निवासियों को परमिट का मुद्दा बहुत पुराना रहा है. ऐसे में इरोम का गैर मणिपुरी से रिश्ता राज्य के लोगों को नापंंसद है.
इरोम एक ऐसा नाम है जिन्होंंने अपनी जिंदगी के 16 साल अपने लोगों के नाम कर दिए. वो चाहती तो सुख से अपनी जिंदगी बिता सकती थी, लेकिन उन्होंंने अपनी जंग जारी रखी. ऐसे में इरोम की प्रेम कहानी पर उंगली उठाने वाले लोगों की मानसिकता पर एक प्रश्न चिह्न लगता है कि क्या एक इंसान होने के नाते इरोम को अपने निजी फैसले लेने का अधिकार नहीं है?
देखा जाए, तो इरोम एक दोहरी लड़ाई लड़ रही हैं. एक लड़ाई अपने लोगों के लिए और दूसरी लड़ाई अपने ही लोगों के खिलाफ. जो उन्हें जीने से रोक रहे हैं. हालांंकि, अनशन खत्म करने के बाद इरोम के राजनीति में आने के भी कयास लगाए जा रहे थे. अब देखना ये है कि इरोम आने वाले सालों में क्या कदम उठाती हैं…Next
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