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900 ‘बाल विवाह’ रोकने वाली महिला, जान से मारने की हो चुकी है कोशिश

पने इस अभियान को बल देने के लिए कीर्ति ने सारथी ट्रस्ट नाम की संस्था का गठन किया जिसमे बच्चों , महिलाओं और पुरुषों को परामर्श  दिया जाता है . कीर्ति बताती हैं कि -” जब हम किसी बाल विवाह को रुकवाते हैं तो कुछ परिवारों को तो हमारी बात समझ आ जाती हैं, लेकिन कुछ लोग परम्पराओं का ढोल पीटते हुए इन बच्चों को अपने साथ रखने से इनकार कर देते हैं .
हमारे पास इन बच्चों को अपने साथ रखने के अलावा कोई चारा नही होता. यह बच्चे हमारी सारथि ट्रस्ट का अंग बन जाते हैं जहाँ वह अपनी पढ़ाई के साथ हमारे अभियान में हमारी मदद भी करते हैं और उचित समय आने पर विवाह कर अपना सामान्य जीवन जीते हैं. किसी -किसी विशेष मामले में हमको क़ानून की मदद भी लेनी पड़ती है .
कीर्ति आज तक तकरीबन 6,000 बच्चों और 5,500 महिलाओं का पुनर्सुधार कर उनके जीवन को खुशहाल बना चुकी हैं . जिसके लिए इनका नाम ‘लिम्का गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी दर्ज हो चुका  है . समाज-सुधार कार्यों में सक्रिय सहभागिता के लिए कीर्ति को अनेक बार सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें ब्रिटिश सरकार की फ़ेलोशिप भी शामिल है .
बाल विवाह जैसी बुराई के उन्मूलन का जिम्मा उठाकर कीर्ति वास्तविक जीवन में साहसिक हीरो बन गयी हैं और बड़े गर्व के साथ कहती हैं कि -” मैं अपनी ज़िन्दगी इन निःसहाय लोगों के नाम कर चुकी हूँ फिर चाहे मुझे इसमें जान का जोखिम क्यों न उठाना पड़े”…Next
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बाल-विवाह, भारतीय समाज का एक ऐसा रोग है जो आधुनिक युग में भी अपने जड़ें जमाये हुए हैं. अनेक समाज-सेवी संस्थाओं के अथक प्रयासों के वाबजूद आज भी कुछ लोग कभी साक्षरता के अभाव में तो कभी मजबूरी वश कम उम्र में अपनी लकड़कियों की शादी कर देते हैं, और ना चाहते हुए भी यह लड़कियाँ ‘विवाह की वेदी’ की बजाय ‘विवाह की बलि’ चढ़ जाती हैं.


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जहाँ एक तरफ हमारे समाज के एक वर्ग को इस तरह की घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता, वहींं दूसरी ओर कीर्ति भारती नाम की एक समाज सेविका पिछले 4 सालों से बाल-विवाह विरोध की राह पर चल पड़ी हैं. कीर्ति अब तक भारत के राजस्थान राज्य में 900 बाल विवाहों को रोक चुकी हैंं. कम उम्र में किये गए 27 बाल विवाह उनके द्वारा रद्द कराये जा चुके हैं और यह बच्चे आज इस थोपे गए बंधन से मुक्त होकर सामान्य जीवन जी रहे हैं.


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असल में कीर्ति बचपन में खुद इस कठोर पड़ाव को तय कर चुकी हैं, उनके जन्म से पहले उनके डॉक्टर पिता ने उनकी मम्मी को अकेले छोड़ दिया था. तब उनकी मम्मी के रिश्तेदारों ने उनसे गर्भपात कराने को कहा लेकिन विषम परिस्थितियों में भी उनकी माँ ने कीर्ति को जन्म दिया, जिसके बाद कीर्ति को जहर पिलाकर मारने की कोशिश की गयी, लेकिन सभी बाधाओं पर विजय हासिल करते हुए इन्होंने ‘बाल विकास और सुरक्षा’ विषय में पीएचडी किया ताकि अपने बाल विवाह रोकथाम के अभियान को सफल बना सकेंं.


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अपने इस अभियान को बल देने के लिए कीर्ति ने सारथी ट्रस्ट नाम की संस्था का गठन किया, जिसमेंं बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को परामर्श दिया जाता है. कीर्ति बताती हैं कि -” जब हम किसी बाल विवाह को रुकवाते हैं, तो कुछ परिवारों को तो हमारी बात समझ में आ जाती है, लेकिन कुछ लोग परम्पराओं का ढोल पीटते हुए इन बच्चों को अपने साथ रखने से इनकार कर देते हैं.


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हमारे पास इन बच्चों को अपने साथ रखने के अलावा कोई चारा नहींं होता. यह बच्चे हमारी सारथी ट्रस्ट का अंग बन जाते हैं, जहाँ वह अपनी पढ़ाई के साथ हमारे अभियान में हमारी मदद भी करते हैं और उचित समय आने पर विवाह कर अपना सामान्य जीवन जीते हैं. किसी -किसी विशेष मामले में हमको क़ानून की मदद भी लेनी पड़ती है.


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कीर्ति आज तक तकरीबन 6,000 बच्चों और 5,500 महिलाओं का पुनर्सुधार कर उनके जीवन को खुशहाल बना चुकी हैं. जिसके लिए इनका नाम ‘लिम्का गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी दर्ज हो चुका  है. समाज-सुधार कार्यों में सक्रिय सहभागिता के लिए कीर्ति को अनेक बार सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें ब्रिटिश सरकार की फ़ेलोशिप भी शामिल है .


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बाल विवाह जैसी बुराई के उन्मूलन का जिम्मा उठाकर कीर्ति वास्तविक जीवन में साहसिक हीरो बन गयी हैं और बड़े गर्व के साथ कहती हैं कि -” मैं अपनी ज़िन्दगी इन निःसहाय लोगों के नाम कर चुकी हूँ, फिर चाहे मुझे इसमें जान का जोखिम क्यों न उठाना पड़े”…Next


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