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ज्वालामुखी की राख के नीचे बसा है पूरा मंदिर, वर्षों तक किसी इंसान ने इसके परिसर में नहीं रखा पैर

यूँ तो मंदिर जैसे धार्मिक स्थल पर जाना सबको पसंद होता है, चाहे कोई इंसान पूजा करे या न करे, पर कुछ मंदिरों की बनावट, नक्काशी और कलाकृति सब लोगों को रिझा लेती हैंं और लोग संस्कृति को दर्शाने वाले ऐसे पवित्र स्थलों पर अनायास ही खींचे चले आते हैं. इसी तरह ‘जावा’ के आइलैंड पर बसी ‘जोग्यकर्ता’ नाम की जगह इंडोनेशिया का सांस्कृतिक केंद्र बिंदु माना जाती है.


बौद्ध, हिन्दू और इंडोनेशिया के पारम्परिक धर्म को दर्शाते ‘बोरोबुदूर’ और ‘प्रम्बनन’ के मंदिर विभिन्नता के मिश्रण को प्रस्तुत करते जो इंडोनेशिया के साथ-साथ विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है. विश्वभर के प्राचीन मंदिरों में बोरोबुदूर और प्रम्बनन के मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं.



प्रम्बनन के हिन्दू मंदिर 10 शताब्दी पुराने हैं जिनको देखने के बाद पता लग जाता है कि यह मंदिर सम्पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित हैं. 9वीं सदी में बने बोरोबुदूर के यह बौद्ध मंदिर इंडोनेशिया का सबसे बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है, जिसमें पाँच चौकोर आधारों की श्रृंखला बनी है जिसके ऊपर की 3 गोलाकार छतों पर 72 स्तूप बने हुए हैं.



इसमें ज्वालामुखी की राख के बने लगभग 20 लाख पत्थर मौजूद हैं, जिनकी ऊँचाई पर चढ़कर पत्थरों की नक्काशी और 504 बुद्ध की मूर्तियों का अद्भुत नज़ारा मनमोहक होता है. बोरोबुदूर के यह मंदिर ज्वालामुखी की राख के नीचे हज़ारों सालों तक अज्ञात रहे. वर्षों तक किसी भी इंसान ने यहाँ के मंदिर परिसर में पैर नहीं रखा.



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ब्रिटिश गवर्नर सर स्टैमफोर्ड ने 1814 में राख और पेड़ पत्तियों के नीचे दबे इन मंदिरोंं को खोजा और यूनेस्को ने इनका पुनः नवीनीकरण कराया. 20 सदी के अंत में इनको ‘वर्ल्ड हेरिटेज साइट’ घोषित कर दिया गया. इस मंदिर परिसर में 500 से अधिक स्मारक मौजूद हैं जिनमेंं से कुछ का पुनर्निर्माण हो चुका है और बाकी आज भी मलबे के रूप में वहाँ पर मौजूद है, जिनको पुरात्तव संबंधी जानकारी और आँकड़े एकत्र करने के उद्देश्य से पर्यटकों के लिए निषेध रखा गया है.



यहाँ मौजूद कुछ स्तूप और स्मारक जीर्ण अवस्था में है जिसके कारण एक बार में केवल 15 लोगों को भीतर जाने की अनुमति होती है, उनके बाहर आने के बाद ही दूसरे लोग प्रवेश पा सकते हैं…Next


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