आप रोजाना अखबार बेचने वाले उस कम उम्र के लड़के को देखते होंगे जो अपनी साईकिल पर अखबार बेचने आता होगा. सोचिए, उसकी महीने की कमाई कितनी होती होगी. शायद आपके महीने के खर्चे से भी कम. हमारे आसपास ऐसे ही कितने ही लोग हैंं जो छोटे-मोटे कामों में लगे हुए हैं और फिर अपनी पूरी उम्र बिता देते हैं. असल में छोटा-मोटा काम करना किसे अच्छा लगता है, लेकिन क्या करें हालात के आगे लोगों को झुकना ही पड़ता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये लोग मरते दम तक अपनी किस्मत नहीं बदल सकते.
अगर आपको लगता है कि ये सब किताबी बातें हैं, तो जरा आसिफ अहमद की कहानी सुन लीजिए. जिन्होंने अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए अखबार बेचने से शुरुआत की थी, इसके बाद उन्होंने जूते और सैंडिल बेचने का काम भी शुरू कर दिया, लेकिन शुरुआत में ये धंधा थोड़ा चल निकला, लेकिन फिर धीरे-धीरे उन्हें इस काम में भी घाटा होने लगा. आसिफ की जिंदगी के बारे में अगर विस्तार से बात करें, तो आसिफ अहमद का जन्म चेन्नई के पल्ल्वरम में एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था. घर की हालत देखते हुए इन्हें 12 साल की उम्र से ही काम करना पड़ा.
उस वक्त आसिफ अखबार और पुरानी किताब बेचा करते थे. कुछ खास फायदा होता न देखकर, फिर इन्होंने जूतों का व्यवसाय करना शुरू किया. पहले तो इन्हें इसमें सफलता मिली, पर अचानक ही ये धंधा ठप्प हो गया. इसके बाद इन्हें अपना और परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया. फिर आसिफ शादियों और पार्टियों में बिरयानी बनाने का काम करने लगे. इसके बाद आसिफ ने अपनी किस्मत मुंबई में आजमाने की सोची. वो जब मुंबई आए तो उनके पास मात्र 4 हजार रुपए थे.
इन पैसों से वो मुंबई की सड़कों पर बिरयानी का ठेला लगाने लगे. उनकी बिरयानी की खुशबू लोगों तक पहुंचने लगी और उनकी शहर में चर्चा होने लगी. कमाई अच्छी होने लगी, तो अब आसिफ ने किराये पर एक कमरा ले लिया और वहां से बिरयानी बेचनी शुरू कर दी. इसके बाद उन्होंने बैंक से लोन लेकर अपना बिरयानी आउटलेट खोल लिया. फिर आसिफ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक उन्होंने 8 बिरयानी रेस्टोरेंट खोल लिए…Next
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