भारत को सोने की चीड़िया कहा जाता था ये सभी जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं जब अंग्रेज भारत पर शासन करते थे उस दौरान वह यहां के राजाओं से कर्ज लेते थे. ऐसी ही एक कहानी है इंदौर के होलकर राजवंश के महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय की, जिन्होंने ब्रिटिश गवर्नर को उस जमाने में एक करोड़ रुपए का कर्ज दिया था. आइए जानते हैं राजा ने ये कर्ज क्यों दिया था.
एक करोड़ का दिया था कर्ज
महाराजा तुकोजीराव होलकर की कर्ज की कहानी को इतिहास भी मानता है. इंदौर के आसपास रेलवे के तीन सेक्शन को जोडऩे के लिए रेलवे लाइन बिछाने के लिए एक करोड़ रुपए का कर्ज दिया था. यह कर्ज 101 वर्ष के लिए 4.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर दिया गया था.
अपने राज्य में बिछाई रेलवे लाइन
तब इंदौर पहला राज्य था, जिसने अपने यहां रेलवे लाइन बिछाई. इसके साथ ही होलकर पहला ऐसा राजघराना बना जिसने किसी भी सरकार को कर्ज दिया था. ब्रिटिश गवर्नर ने तुकोजीराव होलकर द्वितीय से 1869 में एक करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. इसके बाद 1870 में शुरू हुआ था 79 मील लंबी इंदौर-खंडवा रेलवे लाइन पर काम.
मुफ्त में दी थी जमीन
महाराजा तुकोजीराव होलकर ने द्वितीय रेलवे की स्थापना और उसके लाभ को समझते हुए उन्होंने अंग्रेजो को कर्ज दिया था. हैरानी की बात तो ये है कि राजा ने न केवल एक करोड़ का कर्ज दिया था बल्कि मुफ्त में जमीन भी मुहैया कराई थी. 25 मई 1870 को शिमला में वायसरॉय और गर्वनर जनरल इन कौंसिल ने इस समझौते पर मुहर लगाई थी.
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होलकर स्टेट रेलवे के नाम से जाना जाता था
तुकोजीराव होलकर (1844-86) के कार्यकाल में खंडवा से अजमेर तक रेलवे लाइन बिछाने की योजना 1869 में बनाई गई थी. इस रेलवे लाइन को होलकर स्टेट रेलवे कहा गया. पूरे जिले में रेलवे लाइन की कुल लंबाई 117.53 किमी थी. जो रेलवे के तीन सेक्शन इंदौर-खंडवा, इंदौर-रतलाम-अजमेर और इंदौर- देवास-उज्जैन में बंटी थी.
पहला इंजन खंडवा पटरियों पर हाथियों द्वारा खींचकर लाया गया था
जब ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर राजा ने ये रेलवे लाइन बनाने की तैयारी शुरू की उस दौरान इतनी सुविधाएं नहीं थी कि रेलवे के भारी समाना को कही से लाया और ले जाया जा सके. ऐसे में रेलवे इंजन हाथियों द्वारा खींचकर ट्रैक तक लाया गया था.
1877 में शुरू हुई रेलवे लाइन
1877 में रेलवे पूरी तरह काम करने लगी थी. इंदौर से उज्जैन तक फैली इस रेलवे लाइन को राजपूताना-मालवा रेलवे भी कहा जाता था…Next
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