‘मेहरान करीमी नस्सेरी’ एक ईरानी रिफ्यूजी हैं, जिनको ‘सर अल्फ्रेड मेहरान’ के नाम से भी जाना जाता है. यूँ तो रिफ्यूजियों के लिए हर देश की सरकार के ख़ास इंतजाम होते हैं लेकिन मेहरान लगभग 18 वर्षों (1988-2006) तक पेरिस एयरपोर्ट के टर्मिनल में ज़िन्दगी बिताने को विवश थे. 1973 में एक 3 साल का कोर्स करने के लिए मेहरान यूके गए और 1977 में जब वह वापस लौटे तो वहाँ के शाह के विरोध करने के कारण उनको ईरान से निर्वासित कर दिया गया.
फ्रांस-ब्रिटिश इमीग्रेशन अधिकारियों ने बनाया बंधक
मेहरान की माँ एक विदेशी महिला थी जिसके चलते उन्होंने कई ब्रिटिश देशों से उनको नागरिकता देने की अपील की और अंततः बेल्जियम के “यूनाइटेड नेशन हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी” डिपार्टमेंट ने मेहरान को रिफ्यूजी सर्टिफिकेट प्रदान किया गया. मेहरान ने अपनी आगे की लाइफ यूके में स्पेंड करने का डिसिजन लिया, लेकिन इस यात्रा के दौरान उनका रिफ्यूजी सर्टिफिकेट, पासपोर्ट और जरूरी कागज़ात चोरी हो गए जो उनकी ज़िन्दगी को सामान्य बनाने की एकमात्र उम्मीद थे. मेहरान बिना डाक्यूमेंट्स के लन्दन की फ्लाइट में चढ़ गए लेकिन पासपोर्ट न होने की वजह से फ्रांस-ब्रिटिश इमीग्रेशन अधिकारियों ने उनको अरेस्ट कर लिया.
बेल्जियम नेनहीं दिया दोबारा सर्टिफिकेट
मेहरान की एयरपोर्ट एंट्री को लीगल पाया गया और उनको रिलीज़ कर दिया गया. मेहरान ने फिर से बेल्जियम सरकार को सर्टिफिकेट देने की रिक्वेस्ट की, लेकिन कानूनी नियमों के आधार पर बेल्जियम ने दोबारा कोई सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया और यही से एयरपोर्ट मेहरान के लिए घर बन गया.
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टर्मिनल पर ही रहते थे मेहरान
मेहरान अपना ज्यादातर वक़्त किताबों के साथ टर्मिनल में पड़ी बैंच पर बिताते. एयरपोर्ट पर काम करने वाला स्टाफ मेहरान को खाने और जरूरतों के सामान लाकर देते हैं. हॉलीवुड में मेहरान की लाइफ पर “द टर्मिनल” नाम की मूवी बनायीं गयी जो ब्लॉकबस्टर हिट साबित हुई.
चैक था लेकिन कैश कराने के लिए बैंक नहीं था
उनकी लाइफ की रियल स्टोरी को यूज़ करने के लिए मेहरान को काफी अच्छे अमाउंट का चेक दिया गया, लेकिन किसी भी देश के बैंक में अकाउंट न होने के कारण, मेहरान इसको कैश नहीं कर पाए. मेहरान की मानसिक हालात में कुछ परिवर्तन के कारण वह सामान्य व्यक्ति जैसा व्यवहार नहीं करते.
फ्रेंच रेड क्रॉस ब्रांच ने की देखभाल
2006 में मेहरान की तबियत ख़राब होने पर उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया और फ्रेंच रेड क्रॉस ब्रांच ने उनकी देखभाल की और 2008 में पेरिस के आश्रय से उनको हमेशा के लिए एयरपोर्ट लाइफ से छुटकारा मिल गया…Next
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