‘जिंदगी को थोड़े खतरे के साथ ही जीना चाहिए.’ अब आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कौन इंसान होगा, जो अपनी जिंदगी में खतरों को पसंद करता होगा. ऐसी बातें तो फिल्मों में ही अच्छी लगती है, जहां हीरो खतरों का खिलाड़ी बनकर सभी की वाहवाही लूटता है. भई, असल जिंदगी में तो हर कोई चैन और आराम के साथ जिंदगी का लुफ्त उठाना चाहता है. लेकिन अब सतही सोच से परे जरा इस बात को थोड़ा गहराई से सोचिए कि जब तक आपको जिंदगी में किसी बात का डर नहीं होगा, आप अपने कम्फर्ट जोन से निकलकर कुछ नया नहीं कर सकेंगे.
आपके अंदर छुपी कुछ कर गुजरने की चिंगारी को आग बनने के लिए डर नाम के फ्यूल की जरूरत होती है. अपनी जिंदगी को कुछ इसी अंदाज में जीते थे ‘जेआरडी टाटा’ यानि जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा. आधुनिक भारत की औद्योगिक बुनियाद रखने वाले उद्योगपतियों में उनका नाम सबसे पहले लिया जाता है. इसके अलावा उन्हें देश की पहली वाणिज्यिक विमान सेवा ‘टाटा एयरलाइंस’ की शुरुआत की, जो आगे चलकर सन 1946 में ‘एयर इंडिया’ बन गई. इसके साथ ही जेआरडी टाटा की जिंदगी से ऐसे कई पहलु जुड़े हुए हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं.
8 घंटे की कार्य अवधि तय की थी
’ मजदूर वर्ग को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करते हुए ‘मजदूर क्रांति’ का आह्वान करने वाले दार्शनिक कार्ल मार्क्स की ये जोशभरी लाइन आपने भी पढ़ी होगी, लेकिन अगर कहा जाए कि भारत में कामगारों के हालातों की हकीकत में सुध लेते हुए किसी ने पहला कदम उठाया तो, वो जेआरडी टाटा ही थे. उन्होंने कर्मचारियों के लिए आठ घंटे की कार्य अवधि तय की थी.
उनका कहना था कि कंपनी के कर्मचारियों का जीवन बेहतर होना चाहिए. जेआरडी की सोच को कालांतर में भारत सरकार ने स्वीकार किया था. यही नहीं, उनकी ये पहल श्रम कानून में भी शामिल की गई. कर्मचारियों के लिए पीएफ का सिद्धांत भी जेआरडी की ही देन है. इसके अलावा कारखाने में दुर्घटना होने पर कर्मचारी को मुआवजा भी उन्हीं सोच से प्रभावित होकर कानून में शामिल की गई है. ऐसे में करोड़ों की संपत्ति के मालिक किसी व्यक्ति का आम कर्मचारियों के लिए इतना बड़ा कदम उठाना कोई आसान काम नहीं माना जा सकता है.
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62 करोड़ से 10 हजार करोड़ की दौलत का सफर
जेआरडी टाटा महज 34 साल की उम्र में 26 जुलाई 1938 को टाटा संस के चेयरमैन बने थे. उस समय टाटा संस की सिर्फ 15 कंपनी थी, जिसमें टाटा स्टील (टिस्को) भी थी. उन्होंने 1945 में टाटा मोटर्स (टेल्को) की नींव रखी. टाटा मोटर्स की गाड़ी तैयार हुई, तो देश में परिवहन सेवा कहीं बेहतर हुई थी. टाटा स्टील को छोड़ जमशेदपुर में स्थापित टाटा समूह की अधिकतर कंपनियों की स्थापना उनके कार्यकाल में हुई थी. उनके नेतृत्व में टाटा समूह की परिसंपत्ति 62 करोड़ से बढ़कर 10 हजार करोड़ की हो गई थी. जो कि किसी भी उद्योगपति के लिए मामूली बात नहीं है.
इस तरह देखा जाए तो जेआरडी टाटा कर्मचारियों और देश के बड़े उद्योगपतियों दोनों के बीच मशहूर थे. उनकी संपत्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी, वहीं दूसरी ओर इतने दौलतमंद होते हुए भी उन्होंने हमेशा से निचले तबके के बारे सोचते हुए मुख्य पहलुओं को कानून में जोड़ने में भी मुख्य भूमिका निभाई…Next
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