Menu
blogid : 7629 postid : 1193887

यहां हिन्दुओं को मरने के बाद जलाया नहीं दफनाया जाता है, दिलचस्प है कहानी

‘मैं भी इंसान हूं तू भी इंसान है. तू पढ़ता है ‘वेद’  हम पढ़ते ‘क़ुरान’ है. तेरे जिस्म में आत्मा की बू है, मेरे जिस्म में भी एक रुह है.’

धर्म-मजहब से परे इंसान को इंसान बनने का पैगाम देती, शायर शमीम की ये शायरी किसी के भी दिल को छू सकती है. देखा जाए तो ऊपर वाले ने सभी को एक ही मिट्टी से बनाया है. इंसान चाहे किसी भी धर्म का हो मरने के बाद सभी को मिट्टी में मिल जाना है, चाहे किसी को दफनाया जाए या जलाया जाए, सभी को वापस उसी दुनिया में लौटना है जहां से वो आये थे. दूसरी तरफ अगर धर्म के अनुसार बनाए गए नियम-कायदों की बात करें तो जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिन्दुओं की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के रूप में उन्हें जलाया जाता है और मुस्लिम धर्म के अनुसार उन्हें दफनाया जाता है.


kanpur


लेकिन अगर हम आपसे ये कहे कि भारत में एक जगह ऐसी भी है जहां पर हिन्दू धर्म के किसी इंसान की मृत्यु के बाद उन्हें जलाया नहीं बल्कि दफनाया जाता है, तो शायद आपको यकीन नहीं होगा. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक अनोखी परम्परा का पालन पिछले 86 वर्षों से किया जा रहा है. सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन यहां पिछले 86 सालों से हिंदुओं को कब्रिस्तान में दफनाया जा रहा है. जहां 86 साल पहले कानपुर में हिन्दुओं का एक कब्रिस्तान था वही इनकी संख्या बढ़कर सात हो चुकी है.


ghat12


ये है इसके पीछे की कहानी

1930 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस कब्रिस्तान की कहानी बहुत दिलचस्प है. कहा जाता है फतेहपुर जनपद के सौरिख गांव के रहने वाले स्वामी अच्युतानंद दलित वर्ग के कल्याण के लिए बहुत से काम करते थे. एक बार स्वामी जी  कानपुर प्रवास के लिए निकले. इस दौरान साल 1930 में स्वामी जी एक दलित वर्ग के बच्चे के अंतिम संस्कार में शामिल होने भैरव घाट गए थे. वहां अंतिम संस्कार के समय पण्डे बच्चे के परिवार की पहुंच से बड़ी दक्षिणा की मांग रहे थे. इस बात को लेकर अच्युतानंद की पण्डों से बहस भी हुई. इस पर पण्डों ने उस बच्चे का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. पण्डों की बदसलूकी से नाराज अच्युतानंद महाराज ने उस दलित बच्चे का अंतिम संस्कार खुद विधि-विधान के साथ पूरा किया. उन्होंने बच्चे की मृत शरीर को गंगा में प्रवाहित कर दिया. स्वामी जी को ये बात इतनी बुरी लगी कि उन्होंने इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए अंग्रेजों उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों के लिए शहर में कब्रिस्तान बनाने की ठान ली.


ghat11


मौत के बाद भी नहीं मरते यहां के लोग, जानिए कैसे

इसके लिए उन्हें जमीन की जरूरत थी. उन्होंने अपनी बात अंग्रेज अफसरों के सामने रखी. अंग्रेजों ने बिना किसी हिचक के कब्रगाह के लिए जमीन दे दी. तभी से इस कब्रिस्तान में हिंदुओं को दफनाया जा रहा है. 1932 में अच्युतानंद की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर को भी इसी कब्रिस्तान में दफनाया गया. आज जहां धर्म-मजहब के नाम पर रोज दंगे-फसाद होते हैं वहां धार्मिक नियमों को इंसान की बेहतरी के लिए बदलने से भी गुरेज नहीं किया जाता. क्योंकि धर्म इंसान को जोड़ने का काम करता है तोड़ने का नहीं और धर्म के जो नियम हमें एक-दूसरे से अलग करने की बात सिखाए, तो समझ लीजिए ये धर्म नहीं हो सकता है…Next


Read more

भारत के ये 5 मंदिर जहां दान में आते हैं करोड़ों रुपए, जानिए खास बातें

मौत के बाद आत्मा को इतने दिनों में मिलता है नया शरीर

मौत पर आंसुओं से नहीं बल्कि इस तरह दी जाती हैं यहां अंतिम विदाई

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh