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नकाब के साथ दफन हुआ यह कैदी ! जानें क्या है वजह

यह किस्सा है एक ऐसे कैदी का जिसके चेहरे पर से नकाब कभी नहीं उतरा. पूरे 34 साल की कैद के बाद वह अपनी मृत्यु के बाद ही जेल से रिहा हो सका. मृत्यु के बाद उसके शरीर को तो जेल से रिहाई मिल गई लेकिन उसकी पहचान को नकाब से कभी भी रिहाई नहीं मिल सकी. इस रहस्यमई कैदी को कब्र में भी नकाब के साथ ही दफन किया गया.

फ्रांस के इतिहास का न सिर्फ यूरोप के बल्कि पूरे विश्व के इतिहास की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इसी फ्रांस के इतिहास का एक अध्याय ऐसा है जो आजतक रहस्य बना हुआ है. विश्वभर में फ्रांस के इतिहास के इस पहलू पर इतना लिखा और कहा जा चुका है कि यह अपने आप में एक किंवदंती बन चुका है.


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नकाब हटाते ही गोली मारने का था आदेश

फ्रांस के मशहूर सम्राट लुई चौदहवें के शासनकाल में मृत्यु को प्राप्त हुआ वह नकाबपोश कैदी आखिर कौन था? इस रहस्यमयी व्यक्ति के मृत्यु के तुरंत बाद फ्रांस के एक राजकुमार ने अंग्रेजी दरबार के अपने एक मित्र को यह पत्र लिखा था, “कई वर्षों से एक आदमी बास्तील के जेल में नकाब पहनकर रह रहा था, इसी हालत में उसकी मृत्यु हो गई. दो बंदूकधारी रक्षक हमेशा उसकी निगरानी में रहते थे ताकि वह कभी अपना नकाब न निकाल सके. नकाब हटाने पर उसे तत्काल गोली मार देने का आदेश था. नकाब लगाए रखने के अलावा उसे और किसी प्रकार की यातना नहीं दी जाती थी. उसके निवास और भोजन का अच्छा प्रबंध था और उसी सुविधा के अनुसार उसे रखा जाता था. अभी तक किसी को जानकारी नहीं हो सकी है कि वह कौन था”



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खुद सम्राट ही था वह नकाबपोश कैदी?

यानी इस कैदी को इतने रहस्यमई तरीके से रखा गया था कि राजपरिवार के लोगों को भी इसकी पहचान नहीं थी. प्रख्यात फ्रेंच उपन्यासकार अलेक्जेंडर ड्यूमा ने इस घटना से प्रेरेणा लेकर अपना प्रसिद्ध उपन्यास ‘द मैन इन द आयरन मास्क’ लिखा. इस उपन्यास में उसने यह संभावना प्रकट की थी कि वह रहस्यपूर्ण कैदी स्वयं सम्राट लुई होगा, जिसे उसके जुड़वा भाई ने इस सम्मानित कैद में डाल दिया और स्वयं राजा बन बैठा. पर यह उपन्यासकार की महज कल्पना मात्र सी लगती है क्योंकि लुई का कोई जुड़वा भाई था, ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है.


या था सम्राट का नजायज पिता?

ज्यादातर इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि यह रहस्यमई कैदी लुई 14वें का जैविक पिता था. प्रख्यात राजनीतिज्ञ एवं विद्वान लॉर्ड क्विकजोट ने अपने शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला था. उनके अनुसार लुई चौदहवें के वैधानिक पिता लुई 13वें और उसकी रानी ऐन को जब संतान न हुई तो फ्रांस के सर्वोच्च धर्माध्यक्ष तथा राजा के प्रथम मंत्री कार्डिनल.डी. रिचुल को राज्य के उत्तराधिकारी की फिक्र हुई. उस समय फ्रांस की तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक स्थिति ऐसी थी कि राजपरिवार, सामंत और धनी वर्ग के लोग किसी भी प्रकार की सामाजिक वर्जना से दूर, निर्भय होकर एक से अधिक स्त्रियों से यौन संबंध बनाए रखते थे.


लुई तेरहवें के पिता की कई नजायज संताने समाज में अपना स्थान बनाकर पेरिस में रह रही थी. ऐसे ही एक शाही रक्त वाले व्यक्ति को रिचेल ने रानी से नियोग के लिए चुना. तत्कालीन परिस्थितियों के मद्देनजर रानी एनी के पास उस व्यक्ति से संबंध बनाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था.  1638 ई. में रानी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ जो आगे चलकर लुई 14वां बना.

लुई चौदहवां जब कुछ बड़ा हुआ तो लोग काना-फूसी करने लगे कि शिशु राजकुमार अपने वैधानिक पिता लुई तेरहवें से भिन्न है. उनकी मुखारकृति में भी पर्याप्त अंतर था. कयास लगाया जाता है कि लुई चौदहवें के असली पिता को लुई के जन्म के बाद कानडा भेज दिया गया था. ताकि राजपरिवार का भेद सुरक्षित रहे. कुछ वर्षों बाद जब लुई राजा हुआ तो वह फ्रांस लौट आया इस उम्मीद में कि अपने पुत्र की कृपा से वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सके


क्यों नहीं करवा दी उसकी हत्या?

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