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यहां तैनात सैनिकों पर रोज 5 करोड़ खर्च करती है भारत सरकार

अलाइव, वर्टिकल लिमिट, नोर्थ फेस और एवरेस्ट ये कुछ ऐसी हॉलीवुड फिल्में हैं जिसे देखने के बाद कोई भी सहम हो उठता है. आप कभी भी इस तरह की जगहों पर न फंसे इसकी आप दुआ करते हैं. हिमस्खलन और बर्फीले रेगिस्तान पर बनी इस तरह की फिल्में यदि आपको सच्चाई से रुबरु करा सकती है तो जरा सोचिए उन जवानों के बारे में जो तीन महीने तक चौबिसों घंटे इसी जर्जर इलाके में जिंदगी और मौत से लड़ते हैं.


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हाल ही में खबर आई की सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन के कारण 10 भारतीय जवानों की मौत हो गई. लेकिन 10 जवानों में से एक सैनिक छह दिन बाद जीवित निकला. इसे लोग भले ही चमत्कार कहें लेकिन उस सैनिक ने पिछले छह दिनों से इस रणक्षेत्र में जो दिलेरी और हिम्मत दिखाई वह काबिले तारीफ है.


क्या है सियाचिन

सियाचिन हिमालय पर्वत के पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित एक ऐसी जगह है जो बर्फ से पूरी तरफ से ढकी हुई है. लगभग 6000 मीटर की उंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर का तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे और रात में माइनस 70 डिग्री तक रहता है.


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क्यों रहते हैं यहां भारतीय सैनिक

आपको बता दें कि सन 1984 से पहले भारतीय सैनिकों को इस जर्जर और दुर्गम इलाके में तैनात नहीं किया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे पाकिस्तान की नियत बदली भारतीय सैनिकों को यहां सीमा की रखवाली के लिए भेजा जाने लगा. तब से लेकर अब तक यहां लगभग 869 सैनिकों की मौत हो चुकी है.


क्या किया पाकिस्तान ने

दरअसल, 1949 के कराची समझौते और 1972 के शिमला समझौते में दोनों देशों के बीच यह तय किया गया कि प्वाइंट NJ 9842 के आगे के दुर्गम इलाके में कोई भी देश नियंत्रण की कोशिश नहीं करेगा.  इस समझौते के तहत प्वाइंट NJ 9842 भारत और पाकिस्तान के बीच की ‘लाइन ऑफ कॉट्रोल’ थी. लेकिन पाकिस्तान की नीयत खराब होते देर नहीं लगी. उसने इस इलाके में पर्वतारोही दलों को जाने की अनुमति देनी शुरू कर दी, जिसने भारतीय सेना को मुस्तैद कर दिया.


पाकिस्तान का कब्जा

कराची और शिमला समझौते को ताक पर रखते हुए 80 के दशक से ही पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी थी. 1984 में पाकिस्तान ने लंदन की कंपनी को बर्फ में काम आने वाले साजो-सामान की सप्लाई का ठेका दिया. उधर भारत ने भी बर्फीले जीवन के तजुर्बे के लिए 1982 में अपने जवानों को अंटार्कटिका भेजा. 17 अप्रैल 1984 को पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जा करने वाला था लेकिन उससे पहले ही भारत ने 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया.


रोज 5 करोड़ खर्च करती है भारत सरकार

सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय फौज की करीब 150 पोस्ट हैं, जिनमें करीब 10 हजार फौजी तैनात रहते हैं. अनुमान है कि सियाचिन की रक्षा पर साल में 1500 करोड़ रुपए खर्च होते हैं. जबकि रोज 5 करोड़ खर्च करती है भारत सरकार.

यह इलाका इतना जर्जर है कि यहां कोई भी काम हेलिकॉप्टर के बिना हो ही नहीं सकता. सेना की तैनाती हो, खाने-पीने का सामान हो, चौकियों पर रसद और गोला-बारूद की अपूर्ति हो या फिर बीमार बड़े सैनिकों को अस्पताल पहुंचाना हो यहां हर काम हेलिकॉप्टर से होता है.

आमतौर पर एक फौजी की सियाचिन पर सिर्फ 3 महीने के लिए ही तैनाती होती है. इस तीन महीने के दौरान वह न तो नहा पाता है और न ही दाढ़ी बना पाता है. इस तीन महीने की तैनाती के लिए भी फौजियों को 5 हफ्ते की खास ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. इस ट्रेनिंग में सेना के जवानों को बर्फ पर रहने, पहाड़ काट कर ऊंचाई पर चढ़ने के गुर सिखाए जाते हैं...Next


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