गुजरात में सन 1960 से शराबबंदी है लेकिन राज्य में शराब के शौकिनों को शराब न मिल पाती हो ऐसा भी नहीं है. यह छुपा सत्य नहीं है कि गुजरात से सटे राजस्थान और दमन और दीव से नियमित रूप से अवैध रूप से शराब राज्य में आती है. यही नहीं गुजरात से सटे हिल स्टेशन माउंट आबू आने वाले कई गुजरातियों के लिए मुख्य आकर्षण शराब ही होता है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि गुजरात में हर कोई अवैध शराब ही पीता है. राज्य में 60 हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिनके पास शराब खरीदने और उसे पीने का परमिट है.
गुजरात में किसी भी सत्ताधारी पार्टी ने कभी शराबबंदी हटाने की हिम्मत नहीं दिखाई, लेकिन राज्य में 61,353 ऐसे ‘मरीज’ हैं, जिनकी बीमारी सिर्फ शराब पीने से ही दूर हो सकती है. इसलिए राज्य सरकार के प्रोहिबिशन एंड एक्साइज़ विभाग ने उन्हें शराब पीने के लिए हेल्थ परमिट दे रखा है.
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राज्य में यह परमिट हासिल करने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. यह परमिट हासिल करने के लिए शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमारी का प्रमाणपत्र दिखाना जरूरी है, जो किसी एमडी डॉक्टर ने जारी किया हो. मरीज को यह परमिट हासिल करने के लिए आवेदन पत्र के साथ डॉक्टर से प्राप्त प्रमाण पत्र और आयकर दस्तावेज दाखिल करने होते हैं. इसके बाद सिविल अस्पताल के डॉक्टर प्रमाणित करते हैं कि इस व्यक्ति की बीमारी का इलाज शराब पीना ही है.
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परमिट मिल जाने का अर्थ यह नहीं कि मरीज जितनी चाहे उतनी मात्रा में शराब खरीद सकता है. हेल्थ परमिट की मांग करने वाले व्यक्ति को रोज कितनी मात्रा में शराब की जरूरत है, यह सिविल अस्पताल का डॉक्टर ही तय करता है. परमिटधारी लोग राज्य सरकार की प्रमाणित लिकर शॉप से शराब की खरीददारी कर सकते हैं. Next…
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