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कैसे जन्मीं भगवान शंकर की बहन और उनसे क्यों परेशान हुईं मां पार्वती

हिंदुस्तान में परिवारिक रिश्तों का खास महत्व है. आज भले ही लोग संयुक्त परिवार से मुंह मोड़ रहे हों और उनका ध्यान एकल परिवार की तरफ तेजी से बढ़ रहा हो, इसके बावजूद भी लोग खुद को रिश्तों के बंधन से मुक्त नहीं कर पाए हैं. लोग विभिन्न पारिवारिक समारोहों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर परिवार के अटूट बंधन को और ज्यादा मजबूत करते हैं.


Shiva and Parvati 1


वैसे वर्तमान में बढ़ते एकल परिवार का चलन मुख्य रूप से परिवार में  रिश्तों के बीच दरार माना गया है. सास-बहू की तकरार और ननद-भाभी की नोक-झोंक ये कुछ ऐसी घटनाएं हैं जिसने रिश्तों में दूरियां पैदा कर दी है. सवाल यहां यह उठता है कि क्या केवल इतने भर से आज संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं. क्या हमारे पारिवारिक रिश्ते इतने कमजोर हैं कि मामूली सी नोक-झोंक से संबंधों के बीच दरार पैदा हो रही है.


खैर जो भी हो, वैसे सास-बहू में तकरार और ननद-भाभी में नोक-झोंक आज से नहीं बल्कि पौराणिक काल से ही चली आ रही है.


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पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया तो वह खुद को घर में अकेली महसूस करती थीं. उनकी इच्छा थी कि काश उनकी भी एक ननद होती जिससे उनका मन लगा रहता.  लेकिन भगवान शिव तो अजन्मे थे, उनकी कोई बहन नहीं थी इसलिए पार्वती मन की बात मन में रख कर बैठ गईं. भगवान शिव तो अन्तर्यामी हैं उन्होंने देवी पार्वती के मन की बात जान ली. उन्होंने पार्वती से पूछा कोई समस्या है देवी? तब पार्वती ने कहा कि काश उनकी भी कोई ननद होती.


भगवान शिव ने कहा मैं तुम्हें ननद तो लाकर दे दूं, लेकिन क्या ननद के साथ आपकी बनेगी. पार्वती जी ने कहा कि भला ननद से मेरी क्यों न बनेगी. भगवान शिव ने कहा ठीक है देवी, मैं तुम्हें एक ननद लाकर दे देता हूं. भगवान शिव ने अपनी माया से एक देवी को उत्पन्न कर दिया. यह देवी बहुत ही मोटी थी, इनके पैरों में दरारें पड़ी हुई थीं. भगवान शिव ने कहा कि यह लो तुम्हारी ननद आ गयी. इनका नाम असावरी देवी है.


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देवी पार्वती अपनी ननद को देखकर बड़ी खुश हुईं. झटपट असावरी देवी के लिए भोजन बनाने लगीं. असावरी देवी स्नान करके आईं और भोजन मांगने लगीं. देवी पार्वती ने भोजन परोस दिया. जब असावरी देवी ने खाना शुरू किया, तो पार्वती के भंडार में जो कुछ भी था सब खा गईं और महादेव के लिए कुछ भी नहीं बचा. इससे पार्वती दुःखी हो गईं. इसके बाद जब देवी पार्वती ने ननद को पहनने के लिए नए वस्त्र दिए, तो मोटी असावरी देवी के लिए वह वस्त्र छोटे पड़ गए. पार्वती उनके लिए दूसरे वस्त्र का इंतजाम करने लगीं.


इस बीच ननद रानी को अचानक मजाक सूझा और उन्होंने अपने पैरों की दरारों में पार्वती जी को छुपा लिया. पार्वती जी का दम घुटने लगा. महादेव ने जब असावरी देवी से पार्वती के बारे में पूछा तो असावरी देवी ने झूठ बोला. जब शिव जी ने कहा कि कहीं ये तुम्हारी बदमाशी तो नहीं, असावरी देवी हंसने लगीं और जमीन पर पांव पटक दिया. इससे पैर की दरारों में दबी देवी पार्वती बाहर आ गिरीं.


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उधर ननद के व्यवहार से देवी पार्वती का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. देवी पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि कृपया ननद को जल्दी से ससुराल भेजने की कृपा करें. मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने ननद की चाह की. भगवान शिव ने असावरी देवी को कैलाश से विदा कर दिया. लेकिन इस घटना के बाद से ननद और भाभी के बीच नोक-झोंक का सिलसिला शुरू हो गया.


तकरार, मन-मुटाव, नोक-झोंक किसी भी रिश्ते में न हो तो कोई भी परिवार मजबूत नहीं हो सकता. अपने रिश्तों में प्यार और विश्वास लाना है तो ऐसे तकरारों से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए बल्कि खुशी-खुशी गले लगाना चाहिए.


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