Menu
blogid : 7629 postid : 1124524

20 हजार सालाना कमाने वाले माता-पिता का नेत्रहीन बेटा 50 करोड़ की कंपनी का बना मालिक

जब वो पैदा हुआ तो गांववालों ने उसके माता-पिता को उसका गला दबाकर मार डालने का सुझाव दिया. क्योंकि वो जन्म से ही देख नहीं सकता था. लेकिन उसके मां-बाप उसे पढ़ा-लिखाकर समाज के सामने एक नई मिसाल पेश करना चाहते थे. किशोरावस्था में पहुंचते- पहुंचते उसे समाज के दोहरे मापदड़ों का सामना हर मोड़ पर करना पड़ा. लेकिन उसने कभी हिम्मत नहीं हारी. समाज के द्वारा कई बार अस्वीकार किए जाने वाला वो बच्चा आज उम्र के 23 सालों को गुजारकर काफी आगे बढ़ चुका है. आपको जानकर हैरानी होगी कि हैदराबाद की मशहूर कंपनी ‘बोल्लट इंडस्ट्री’ के सीईओ बने श्रीकांत की कहानी फिल्मों की तरह ही उतार-चढ़ावों से भरी हुई है.


bolla


श्रीकांत बोला नाम के इस शख्स की 50 करोड़ टर्नओवर वाली ये कंपनी मुख्य रूप से कम पढ़े-लिखे, अशिक्षित, और स्पेशली एबल्ड लोगों को रोजगार मुहैया करवाती है. इन लोगों की मेहनत के बल पर श्रीकांत की कंपनी नित नई बुलदियों को छू रही है. अपने जीवन को परिभाषित करते हुए श्रीकांत कहते हैं कि ‘मुझे लगता है मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूं. मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा कि मैं आज लखपति हूं बल्कि मेरे माता-पिता की कमाई सालाना 20 हजार रुपए थी. उन्होंने बेशक मुझे कोई सुझाव नहीं दिया लेकिन मैं उनसे मिले प्यार और स्नेह से हमेशा ही ऊपर उठता रहा हूं. मेरे लिए वो दुनिया के सबसे अमीर लोग हैं.’ अपने बचपन के दिनों के अनुभव बाटंते हुए श्रीकांत कहते हैं कि ‘मुझे क्लास में बैठने के लिए सबसे पीछे वाला बैंच दिया जाता था. मुझे खेल-कूद से भी दूर रखा जाता था.


शायद हमारे गांव का माहौल ही ऐसा था जिसमें सामान्य से अलग तरह के लोगों से मेल-जोल रखना सही नहीं माना जाता था. वहीं दसवीं क्लास में मेरी न देख पाने की अक्षमता की वजह से मुझे विज्ञान विषय नहीं दिया गया.18 साल में कदम रखते ही मुझे व्यवस्था से लड़ना पड़ा लेकिन अंत में मुझे सफलता मिली और मैं अमेरिका में स्थित मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान में दाखिला लेने वाला पहला नेत्रहीन छात्र बन गया. जिसे मैं व्यवस्था के खिलाफ एक बड़ा कामयाबी मानता हूं.’ आज श्रीकांत के चार प्रोडक्शन प्लांट है. हुबली (कर्नाटक), निजामाबाद (तेलगांना), और हैदराबाद (तेलगांना) में दो प्लांट हैं जिनमें काम करने वाले अधिकतर लोग व्यवस्था या सामाजिक भेदभाव से लड़कर वहां तक पहुंचे हैं.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to harendra rawatCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh