हमारे देश में कानून व्यवस्था बहुत जटिल मानी जाती है यहां हर एक गुनाह के लिए सजा निर्धारित की गई है लेकिन ये बता पाना मुश्किल है कि अपराधी को गुनाह के लिए सजा कब मिलेगी. इसका सीधा सा कारण है, लम्बी चलती कानूनी प्रक्रिया. किसी भी केस को देखकर आप अन्दाजा नहीं लगा सकते कि कोई केस कितना खीचेगा. कानून की समझ रखने वाले लोग मानते हैं कि इंसाफ मिलने में चाहे कितनी भी देरी हो जाए लेकिन जल्दबाजी में किसी बेगुनाह को सजा देना, संविधान की मर्यादा के खिलाफ है. लेकिन ये सभी तर्क वहां दम तोड़ते हुए नजर आते हैं जब तारीख पर तारीख मिलने के बाद भी अपराधी को नाम मात्र की सजा दी जाए. ऐसा ही चौंका देने वाला मामला सामने आया एटा, उत्तरप्रदेश की रहने वाली नर्स से जुडे एक केस में. दरअसल नसबंदी रैकेट से जुड़े होने के अपराध में नर्स पर कार्यवाही करते हुए अदालत ने 11 रुपए के गबन में, 26 साल बाद नर्स को 100 रुपए जुर्माना और एक साल की कैद की सजा सुनाई है.
यहां पोर्न देखने पर मिलती है मौत की सजा
1989 में एटा में नसबंदी कैपेन चलाया गया था जिसमें 4600 पुरूष-महिलाओं की नसबंदी का लक्ष्य रखा गया था. सरकार की ओर से प्रत्येक नसबंदी करवाने वाले व्यक्ति को 181 रुपए देने वादा किया गया था. इसी तरह के एक कैंप में 12 लोगों ने पंजीकरण करवाया था लेकिन किसी ने इन पंजीकरणों की शिकायत करके ये दावा किया था कि ये सभी नाम फर्जी है. साथ ही इन लोगों को मिलने वाली रकम भी कैंपेन से जुड़े हुए लोगों ने आपस में बांट ली है. इस बात की जांच करने के लिए एक समिति गठित की गई. जिसने 7-8 साल तक अपनी जांच में पाया कि 12 नामों में से 11 नाम फर्जी थे.
यहां अपराध चाहे जो हो, सजा के तौर पर मिलती है शराब
समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट ‘एंटी करप्शन सेल’ को सौंपते हुए इस कैंपेन से जुड़े लोगों के नाम दे दिए. इस पर तत्कालीन डीसीपी ने एफआईआर दर्ज करते हुए लेखपाल, सीएमओ, नर्स, स्वीपर, अकाउंटेंट को हिरासत में लिया. 26 साल के दौरान करीब 185 सुनवाई की गई. करीब दो दशकों से भी ज्यादा समय में दो आरोपियों की मौत भी हो गई. वहीं दूसरे आरोपियों पर अपराध साबित नहीं हो सका. जबकि नर्स को 11 रुपए के गबन के आरोप में 100 रुपए जुर्माना और एक साल की सजा सुनाई गई..Next
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