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विष्णु जी की दूसरी शादी से स्तब्ध लक्ष्मी जी ने जो किया उस पर विश्वास करना मुश्किल है, जानिए एक पौराणिक सत्य

विवाहित दंपत्तियों के बीच कहा-सुनी और लड़ाई-झगड़े होना बहुत सामान्य सी बात है. मनुष्य तो मनुष्य आप यकीन नहीं करेंगे, देवता भी विवाह के बाद अपने जीवनसाथी से लड़ने, उनसे रूठने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे. आज हम आपको भगवान विष्णु और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी से जुड़ी ऐसी ही एक कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद आप ना जानते हों. भगवान वेंकटेश्वर के गृहनगर तिरुपति को नव विवाहित दंपत्तियों के लिए बहुत खास माना जाता है और ऐसा इसलिए क्योंकि इसी स्थान पर भगवान वेंकटेश्वर और पद्मावती का विवाह संपन्न हुआ था. किसी भी आम विवाह की तरह वेंकटेश्वर और पद्मावती के विवाह में भी परेशानियां आईं, लेकिन आखिरकार उन सभी परेशानियों से जूझने के बाद दोनों ने एक-दूसरे को अपना बना लिया.


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पुराणों के अनुसार एक बार अपने पति विष्णु से नाराज होकर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर वास करने आ गईं थीं. पृथ्वी पर वह गोदावरी नदी के किनारे एक आश्रम में रहने लगीं और एक दिन अपनी पत्नी की तलाश करते हुए भगवान विष्णु स्वयं धरती पर आकर शेषाद्रि नदी के समीप पहाड़ी पर रहने लगे. विष्णु और लक्ष्मी के बीच इस अलगाव की वजह से भगवान शिव और ब्रह्मा भी बहुत परेशान थे, इसलिए उन्होंने इस मसले में हस्तक्षेप करने का निश्चय किया. गाय और बछड़े का रूप धरकर वे चोल राजा के यहां रहने लगे. ग्वाला उन दोनों को रोज शेषाद्रि नदी के किनारे घास चराने ले जाता था, जहां विष्णु बिना किसी जीविका के साधन के वास कर रहे थे. गाय रूपी भगवान ब्रह्मा अपना सारा दूध विष्णु को दे आते थे. ग्वाला यह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसकी गाय का दूध जा कहां रहा है. एक दिन गाय का पीछा करता हुआ शेषाद्रि नदी के समीप पहाड़ी पर पहुंच गया जहां विष्णु का वास था. ये जानने की कोशिश में कि पहाड़ी के भीतर कौन है, उसने अपनी कुल्हाड़ी उस पहाड़ी पर मारी जो विष्णु जी को लग गई.


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अपने शरीर से बहते खून को रोकने के लिए भगवान विष्णु जड़ी-बूटियों की खोज में भगवान वराहस्वामी, जो सुअर के रूप में विष्णु के तीसरे अवतार थे, की समाधि के पास पहुंच गए. जहां उन्हें वास करने की आज्ञा मिल गई और वो भी इस शर्त पर कि विष्णु के सभी भक्त उनसे पहले वराहस्वामी की पूजा करेंगे. विष्णु वहीं अपना आश्रम बनाकर रहने लगे और एक दिन वकुलादेवी नाम की महिला उस आश्रम में आई, जिन्होंने एक मां की तरह उनकी देखभाल की. राजा आकाश राजन की अपनी कोई संतान नहीं थी और एक दिन उन्हें बागीचे में एक छोटी बच्ची मिली, जिसे उन्होंने अपनी बेटी बना लिया और नाम रखा पद्मावती. पद्मावती बेहद शालीन और खूबसूरत थी. पद्मावती को ये वरदान प्राप्त था कि उनका विवाह भगवान विष्णु से होगा. वकुलादेवी ने विष्णु का नाम श्रीनिवासन रखा था, एक दिन बहुत प्यास लगने की वजह श्रीनिवासन तालाब के किनारे पानी पीने गए जहां उन्होंने पद्मावती को देखा और उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए.





पद्मावती को भी विष्णु भा गए लेकिन लोगों ने उन्हें एक आम शिकारी समझकर वहां से भगा दिया. बाद में विष्णु जी ने वकुलादेवी को अपनी हकीकत बताई और कहा कि वह स्वयं जाकर पद्मावती के पिता राजा आकाश राजन से बात करे. संतों और ज्योतिषाचार्यों से बात कर राजा ने दोनों के विवाह का मुहूर्त वैशाख से 13वें दिन का निकलवाया. श्रीनिवासन ने कुबेर से 14 लाख सोने के सिक्के उधार लेकर शादी के इंतजाम किए और पद्मावती के साथ परिणय सूत्र में बंध गए.


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लक्ष्मी जी भी श्रीनिवासन के दायित्वों और उनकी प्रतिबद्धता को समझ गईं और दोनों के बीच हस्तक्षेप ना कर सदैव के लिए विष्णु जी के दिल में रहने का निश्चय किया.



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