कोई बीमार व्यक्ति जब अपने उपचार के लिए किसी चिकित्सक के पास जाने के विषय में सोचता है तो सबसे पहले उसके दिमाग में कौंधने वाली चीजों में से एक है भावी चिकित्सक की फीस. व्यक्ति अमीर हो या गरीब, चिकित्सक की फीस के बारे में वह पहले पता करने की कोशिश करता है. उसके बाद सामर्थ्य के अनुसार वह अपना किसी चिकित्सक के पास जाने का निर्णय लेता है.
ऐसे समय में जब डॉक्टरों व अस्पतालों का खर्चा लाखों में हो, किसी चिकित्सक की फीस मात्र एक या दो रूपये होने की बात आँखों की पुतलियों को फैलने से नहीं रोक सकती. लोक मीडिया पर प्रसारित एक ख़बर के अनुसार एक चिकित्सक अपने मरीजों से केवल 2 रूपये की फीस लेते हैं. अगली बार दोबारा जाँच के लिये आने पर उनसे केवल बतौर फीस महज एक रूपया ही लिया जाता है.
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ये चिकित्सक महाराष्ट्र के आदिवासी इलाके मेलघाट में वर्षों से चिकित्सा के पेशे से जुड़े रहकर अपनी सेवा दे रहे हैं. पेशेवर होने के बावज़ूद इन्होंने धन के मुकाबले सेवा को प्राथमिकता दी. चिकित्सक रवीन्द्र कोल्हे का सेवा भाव जॉन रस्किन की इन पंक्तियों से प्रेरित है, “यदि आप मानव की सच्ची सेवा करना चाहते हैं तो सबसे गरीब और उपेक्षित लोगों के बीच जाकर काम कीजिये.’’
नागपुर विश्वविद्यालय से एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद उन्हें आदिवासियों की पीड़ा और आवश्यकताओं का बोध हुआ. उनके मन में सेवा का भाव जगा और अपने इस जगते भाव को जीने के लिये उन्होंने एम डी की डिग्री हासिल की. स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिये इन्होंने मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के जिलों का दौरा किया.
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उस समय उनके इलाके में केवल दो स्वास्थ्य केंद्र हुआ करते थे. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बीच बसे इस गाँव में अपने क्लिनिक तक पहुँचने के लिये उन्हें रोजाना 40 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. आज अपने क्लिनिक पर वो 24 घंटे सलाह के लिये उपलब्ध रहते हैं. आधारभूत संरचनाओं के अभाव वाले इस इलाके में सेवा की यह भावना निश्चय ही चिकित्सक रवीन्द्र को मानव बनाती है.Next…..
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