आपने सुना होगा कि महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध के कारण आज भी करुक्षेत्र की भूमि लाल है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि करुक्षेत्र की तरह एक स्थान और है जहां की भूमि हजारों सैनिकों के रक्त से लाल हो गई थी. वह है हरियाणा का पानीपत.
हरियाणा के पानीपत की रणभूमि में हुए रक्तपात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यहाँ पर लगे पेड़-पौधों का रंग भी तब लाल और काला पड़ गया था. इस रणभूमि में एक आम का पेड़ भी था जिसके फल को काटने पर रक्त की तरह लाल रंग का रस निकलता था.
इतिहास की किताबों में आपने पानीपत की लड़ाई को जरूर पढ़ी होगी. इतिहास में यहाँ तीन प्रमुख लड़ाई हुई थी. इस भूमि पर पहली लड़ाई सन् 1526, दूसरी लड़ाई सन् 1556 और तीसरी लड़ाई सन् 1761 में लड़ी गई थी.
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यह घटना पानीपत की तीसरी लड़ाई की है. यह युद्ध मराठों और मुगलों के बीच लड़ा गया था. मराठों की तरफ से सदाशिवराव भाऊ और मुगलों की ओर से अहमदशाह अब्दाली ने नेतृत्व किया था. इस युद्ध में हजारों सैनिकों की जाने गई थी. युद्ध में अकेले मैराठों ने अपने 70 हजार से भी ज्यादा सैनिकों को गवाए थे. इस युद्ध को भारत में मराठा साम्राज्य के अंत के रूप में देखा जाता है. युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की जीत हुई थी.
युद्ध भूमि में एक विशाल आम का पेड़ था. युद्ध के दौरान जब सैनिक थक जाते थे तो इसी पेड़ के नीचे विश्राम करते थे. कहा जाता है कि भीषण युद्ध के कारण हुए रक्तपात से यहाँ की मिट्टी लाल हो गई थी, जिसका प्रभाव रणभूमि में आम के पेड़ पर भी पड़ा. रक्त के कारण आम के पेड़ का रंग काला हो गया और तभी से इस जगह को ‘काला अंब’ यानी काला आम के नाम से जाना जाने लगा.
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‘काला अंब’ से जुड़े एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस पेड़ पर लगे आम को काटने पर उनमें से जो रस निकलता था, उसका रंग रक्त की तरह लाल होता था. वर्षों बाद यह पेड़ सूख गया तब इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया था. सुगन चंद ने इस पेड़ की लकड़ी से अपने घर के दरवाजे बनवाए. यह दरवाजा अभी भी पानीपत म्यूजियम में रखा गया है.Next…
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