उस समय भारत के वायसराय थे लॉर्ड मिंटो. उस दौर में भारत के एक पहलवान राममूर्ति नायडू की ताकत के काफी चर्चे थे. जब राममूर्ति की ताकत के बारे में मिंटो को पता चला तो उन्होंने राममूर्ति की परीक्षा लेनी चाही. मिंटो को अपनी कार के शक्तिशाली इंजन पर बहुत भरोसा था. राममूर्ति ने लॉर्ड मिंटो की कार को पीछे से चेन बांधकर पकड़ा और मिंटो ने पूरी स्पीड से कार को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन मिंटो की तमाम कोशिश के बाद भी उनकी कार एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकी. राममूर्ति वह भारतीय पहलवान थे जिन्हें इंग्लैंड के राजा और महारानी ने ‘भारतीय हर्क्युलीज’ की उपाधी दी थी. इन्हे कलयुग का भीम भी कहा जाता था.
सांड को उसकी सींग पकड़कर असानी से पटक देने वाले राममू्र्ति का जन्म मौजूदा आंध्र प्रदेश के वीरघट्टम गांव में अप्रैल, 1882 में हुआ था. राममुर्ति का मन पढ़ाई में तो नहीं लगता था लेकिन उन्हें कुश्ती का इस कदर चश्का लगा कि राममूर्ति के चाचा ने उन्हें प्रफेशनल ट्रेनिंग के लिए मद्रास भेज दिया. कुछ ही वक्त में क्षेत्र भर में राममूर्ति के बल और साहस के कसीदे पढ़े जाने लगे. एक प्रफेशनल पहलवान बनकर लौटे राममूर्ति ने एक स्थानीय कॉलेज में इंस्ट्रक्टर की नौकरी पकड़ ली. नौकरी के साथ राममूर्ति ने अपना शक्ति प्रदर्शन भी किया करते थे.
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उन्होने अपना पहला पब्लिक शो 1911 में किया. राममुर्ति ने अपने हाथों के मसल पर लोहे की जंजीर बांधी और फिर अपनी मांसपेशियों को कड़ा करके लोहे की चैन को तोड़ दिया. उनके हुनर को देख वहां मौजूद सरकारी महकमे के लोग अवाक रह गए. राममुर्ति अपने छाती पर लकड़ी का फट्टा रखते जिसपर से हाथी चल कर गुजर जाती. यह दृश्य देख लोग दांतो तले उंगली दबा लिया करते पर राममुर्ति का बाल भी बांका नहीं होता.
राममूर्ति ने कॉंग्रेस की मीडिंग में भी अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था जिससे प्रभावित होकर पं. मदन मोहन मालवीय ने उन्हें ब्रिटेन के राजा और महारानी के सामने अपनी शक्ति दिखाने को कहा था. राममूर्ति ने अपनी एक सर्कस कंपनी खोली थी.
देश-विदेश में उनका सर्कस खूब विख्यात हुआ और राममूर्ति ने खूब दौलत कमाई लेकिन यह जानकर आप हैरानी रह जाएंगे कि उन्होंने अपनी कमाई हुई अधिकांश दौलत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए दान कर दी. Next…
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