हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में मलाणा गांव है.
दिखाते हैं. यहाँ दर्ज नक्काशी में युद्ध करते सैनिकों को दिखाया दिखाया गया है. यहां के लोगों की भाषा भारतीय भाषाओँ से अलग और ग्रीक भाषा से मिलता जुलता है. यहां के लोगों की शक्ल-सूरत भी ग्रीक देश के लोगों की तरह ही है. मलाणा विश्व में सबसे अच्छा चरस की खेती के लिए प्रसिद्ध है. यहां के लोग चरस को काला सोना कहते हैं. हैरानी की बात यह है कि यहाँ चरस के अलावा दूसरी फसल नहीं होती.
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अब बात करते हैं यहाँ की स्वतंत्र कानून व्यवस्था और न्यायपालिका की. भारतीय प्रदेश का अंग होने बावजूद भी मलाणा की अपनी न्याय और कार्यपालिका है. यहाँ की अपनी अलग संसद है, जिसके दो सदन हैं पहली ज्येष्ठांग (ऊपरी सदन) और दूसरा कनिष्ठांग (निचला सदन). ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं. जिनमें तीन सदस्य कारदार, गुर व पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं. बाकी आठ सदस्यों को गांववासी मतदान द्वारा चुनते हैं, इसी तरह कनिष्ठांग सदन में गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य को प्रतिनिधित्व दिया जाता है. यह सदस्य घर के बड़े-बुजुर्ग होते हैं.
इनके संसद में फौजदारी से लेकर दीवानी जैसे मसलों का हल निकाला जाता है. यहाँ दोषियों को सजा भी सुनाई जाती है. यहां भले ही दिल्ली जैसा संसद भवन नहीं है परन्तु यहाँ कार्य वैसा ही होता है. संसद भवन के रूप में यहां एक ऐतिहासिक चौपाल है. अगर संसद किसी विवाद का हल खोजने में विफल होती है तो मामला स्थानीय देवता जमलू के सुपुर्द कर दिया जाता है.
जब कोई मसाला जमलू देवता के पास आता है तो यहाँ अजीब तरीके से फैसला सुनाया जाता है. फैसले सुनाने के लिए दोनों पक्षों से एक-एक बकरा मंगाया जाता है. इसके बाद दोनों बकरों की टांग में निर्धारित मात्रा में जहर भरा जाता है. अब जिसका बकरा पहले मर जाता है वह दोषी माना जाता है. ऐसे में कोई व्यक्ति फैसले का विरोध करता है तो उसे समाज से बहार निकाल दिया जाता है.Next…
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