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पृथ्वी का सबसे सत्यवादी इंसान कैसे बना सबसे बड़ा झूठा व्यक्ति? पढ़िए महाभारत की हैरान करने वाली हकीकत

महाभारत में हर किरदार अपने आप में अनोखा और अद्वितीय है. एक तरफ जहां अर्जुन और कर्ण को विश्व का सबसे बड़ा धनुर्धर माना जाता है तो वहीं भीम को गदाधारी और धर्मराज युधिष्ठिर को भाले में निपुण माना गया है. वैसे युधिष्ठिर में एक और योग्यता थी कि वह विश्व के सबसे बड़े सत्यवादी थे. वह अपनी सत्यवादिता एवं धार्मिक आचरण के लिए विख्यात रहे हैं, लेकिन इतने बड़े सत्य निष्ठावादी होने के बावजूद भी युधिष्ठिर झूठे कैसे बन गए?



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दरअसरल बात युद्ध के दिनों की है जब भीष्म पितामह की तरह गुरु द्रोणाचार्य भी पाण्डवों के विजय में सबसे बड़ी बाधा बनते जा रहे थे. श्रीकृष्ण जानते थे कि गुरु द्रोण के जीवित रहते पाण्डवों की विजय असम्भव है. इसलिए श्रीकृष्ण ने एक योजना बनाई जिसके तहत महाबली भीम ने युद्ध में अश्वत्थामा नाम के एक हाथी का वध कर दिया था. यह हाथी मालव नरेश इन्द्रवर्मा का था.


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द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था और यह भी निश्चित था कि अपने पुत्र से प्रेम करने के कारण द्रोणाचार्य अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनकर स्वयं भी प्राण त्याग देंगे.



इसलिए अश्वत्थामा हाथी के मृत्यु के बाद योजना के तहत जब यह समाचार भीम द्वारा द्रोणाचार्य को बताया गया तो पहले उन्हें यकीन नहीं हुआ, लेकिन यही बात जब उन्होंने कभी झूठ न बोलने वाले सत्यवादी युधिष्ठिर से पूछा तो युधिष्ठिर ने भी अपने तरीके से हां कह दिया.


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द्रोणाचार्य ने पूछा “युधिष्ठिर! क्या यह सत्य है कि मेरा पुत्र अश्वत्थामा मारा गया?” युधिष्ठिर ने कहा- “अश्वत्थामा हतोहतः, नरो वा कुञ्जरोवा”, अर्थात “अश्वत्थामा मारा गया, परंतु मनुष्य नहीं पशु.” युधिष्ठिर ने ‘नरो वा कुञ्जरोवा’ अत्यंत धीमे स्वर में कहा था और इसी समय श्रीकृष्ण ने भी शंख बजा दिया, जिस कारण द्रोणाचार्य युधिष्ठिर द्वारा कहे गए अंतिम शब्द नहीं सुन पाए. उन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और समाधिष्ट होकर बैठ गए. इस अवसर का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया.


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