कहते हैं जब भगवान कोई वरदान देते हैं तो जीवन सफल हो जाता है. प्रभु के आशीर्वाद से बड़ा इस विश्व में और कुछ नहीं है. वेदों व पुराणों में विख्यात ऐसी कितनी ही कथाएं हैं जिनमें हमें भगवान की महिमा व इनके द्वारा अपने भक्तों व शिष्यों को दिए गए वरदानों का उल्लेख मिलता है. कुछ इसी तरह की कथा शास्त्रों में विराजमान हैं जहां भगवान शिव को प्रसन्न करने व उनसे वरदान मांगने के लिए भगवान विष्णु ने अपना नेत्र तक उनके समक्ष अर्पित कर दिया था. परंतु ऐसा क्या हुआ था कि विष्णु को अपना नेत्र ही भगवान शिव को देना पड़ा?
भगवान शिव ने सुदर्शन चक्र दिया था विष्णु को
विश्व के पालनहार भगवान विष्णु को हिन्दू धर्म के तीन मुख्य ईश्वरीय रूपों में से एक रूप माना जाता है. विष्णु के हर चित्र व मूर्ति में उन्हें सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है. यह सुदर्शन चक्र उन्हें भगवान शिव ने जगत कल्याण के लिए दिया था.
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क्यों दिया था शिव ने विष्णु को सुदर्शन चक्र
भगवान शिव द्वारा विष्णु को सुदर्शन चक्र देने के पीछे पुराणों में एक कथा उल्लेखनीय है. कहा जाता है कि एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास आए. देवताओं की समस्या का समाधान निकालने के लिए उस समय विष्णु ने भगवान शिव से कैलाश पर्वत पर जाकर प्रार्थना की.
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शिव को प्रसन्न करने के लिए विष्णु ने हजार नामों से शिव की स्तुति की. इस दौरान प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प शिव को अर्पित करते रहे. तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया.
शिव की माया से अनजान विष्णु इस बात का पता ना लगा सके और इसीलिए एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढ़ने लगे, परंतु उन्हें फूल नहीं मिला. तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया. विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा. तब विष्णु ने एक ऐसे अजेय शस्त्र का वरदान मांगा जिसकी सहायता से वे देवताओं को दैत्यों के प्रकोप से मुक्त कर सकें. फलस्वरूप भगवान शंकर ने विष्णु को अपना सुदर्शन चक्र दिया.
विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया. इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप से सदैव के लिए जुड़ गया.
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