मॉनसून का आगमन हो चुका है पर भारत के कई राज्यों में अब भी इसके दस्तक का इंतजार है. कंठ सुखाती और त्वचा जलाती धूप से मॉनसून यूँ तो बड़ी राहत देता है, पर सबसे ज्यादा राहत उन्हें मिलती है जिन्हें दमा के कारण साँस लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मॉनसून का दमा से एक कनेक्शन है! मॉनसून के आगमन के साथ ही दमा से पीड़ित व्यक्ति बड़ी संख्या में हैदराबाद में इकट्ठा होते हैं. इस उम्मीद में कि अब साँस लेने में परेशानी होने पर उन्हें इनहेलर की जरूरत नहीं पड़ेगी.
दरअसल हैदराबाद में एक परिवार अत्यंत मशहूर है. उनकी प्रसिद्धि का कारण दमा का पारम्परिक तरीक़े से उपचार है. उपचार का यह तरीक़ा अनोखा इसलिये है क्योंकि इसमें दमा पीड़ित लोगों के मुँह में पीले आयुर्वेदिक लेप से सनी ज़िंदा मछली को घुसा दिया जाता है.
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छोटी जीवित मछली पर पीले रंग की लेप लगायी जाती है. इस लेप को बनाने वाले इसमें एक निश्चित सूत्र के पालन का दावा करते हैं. बाथिनी गौड़ परिवार दावा करता है कि यह सूत्र वर्ष 1845 में उनके पूर्वजों को किसी संत ने बताया था. तब से लेकर आज तक उस सूत्र के इस्तेमाल से यह परिवार दमा पीड़ितों का उपचार करता आया है.
आयुर्वेदिक लेप से सनी ज़िंदा मछली को मुँह में डालने के बाद बाथिनी गौड़ परिवार के सदस्य पीड़ितों के मुँह में अँगुली डाल यह सुनिश्चित करते हैं कि मछली कंठ से नीचे उतरी या नहीं. तीन वर्षों के नियमित उपचार के बाद यह आशा की जाती है कि पीड़ितों को दमा और साँस लेने में हो रही अन्य परेशानियों से मुक्ति मिल जायेगी! दमा के उपचार के लिए दो दिनों की नि:शुल्क दवाई लेने यहाँ दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग आते हैं जिसकी तारीख मॉनसून के आगमन पर निश्चित की जाती है.
दमा का यह उपचार विवादों से भी घिरा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं और चिकित्सकों का एक समूह उपचार के इस तरीक़े को अवैज्ञानिक करार दे अपना विरोध जताता है, जबकि उपचार के दौरान सरकार हैदराबाद के इस शहर तक पहुँचने के लिए विशेष रेलगाड़ियों और भीड़ नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बलों की व्यवस्था करती है.Next….
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