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1200 पाकिस्तानी सैनिकों पर भारी पड़ने वाले इस आम नागरिक को मिला यह सम्मान

जरूरी नहीं की देश की रक्षा करने के लिए वर्दी वाला सिपाही बना जाए. कुछ ऐसे भी आम नागरिक होते हैं जो सेना में न होकर भी देश की रक्षा में अहम भूमिका अदा करते हैं. ऐसे ही एक नागरिक थे गुजरात के कच्छ में रहने वाले रणछोड़दास. देश की सीमा की रक्षा में उनके योगदान के मद्देनजर भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने अपनी एक चौकी का नाम रणछोड़दास के ऊपर रखने का फैसला किया है.



रणछोड़दास के नाम पर न सिर्फ चौकी का नामकरण किया जाएगा बल्कि उनकी एक प्रतिमा भी चौकी पर लगाई जाएगी. दरअसल रणछोड़दास ने भारत-पाकिस्तान में हुए 1965 और 1971 के युद्ध में फौज के मार्गदर्शन में अहम भूमिका अदा की थी. इलाके से भलीभांति परिचित रणछोड़ ने 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन की सही सूचना भारतीय सेना को दी थी. यह सूचना सेना के लिए काफी मददगार साबित हुई.


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जनवरी-2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़दास का निधन हो गया था. बीएसएफ के इन्स्पेक्टर जनरल ए के सिन्हा के अनुसार, केन्द्र सरकार की ओर से इजाजत मिलने पर पोस्ट का नामकरण किया गया है. यहां उनकी प्रतिमा के साथ संक्षिप्त में उनके बारे में जानकारी व उनके योगदान को भी अंकित किया जाएगा.


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रणछोड़दास अविभाजित भारत के पेथापुर गथडो गांव के मूल निवासी जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में चला गया. चरवाहे का काम करने वाले रणछोड़भाई पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर बनासकांठा (गुजरात) में बस गए.


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साल 1965 के आरंभ में पाकिस्तानी सेना ने भारत के कच्छ सीमा स्थित विद्याकोट थाने पर कब्जा कर लिया था. इसे छुड़ाने के लिए हुई जंग में भारत के 100 जवान शहीद हो गए. रणछोड़दास ने पाकिस्तानी सैनिकों से नजरें बचाकर उनकी सही लोकेशन की जानकारी भारतीय सेना की दूसरी टूकड़ी तक पहुंचाई. उन्होंने मोर्चे पर समय रहते पहुंचने के लिए भारतीय सेना की टुकड़ी का मार्गद्शन भी किया. अंतत: इस लड़ाई में भारतीय सेना की विजय हुई.


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रणछोड़दास बनासकांठा पुलिस में राह दिखाने वाले यानी पगी के रुप में कार्यरत रहे. जुलाई 2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी. रणछोड़दास पगी भारत के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम माणिक शॉ के हीरो थे. वे उन कुछ सिविलियन में शामिल थे जिनके साथ माणिक शॉ ने डिनर किया था.


निधन से पहले हॉस्पिटल में माणिक शॉ बार-बार रणछोड़ पगी का नाम लेते थे. आखिरकार डॉक्टरों ने उनसे पूछ ही लिया, ‘हू इज पगी’. और जब माणिक शॉ ने पगी के बारे में चिकित्सकों को ब्रीफ किया तो वे भी दंग रह गए.


1971 के युद्ध के समय रणछोड़दास बोरियाबेट से ऊंट पर सवार होकर पाकिस्तान की ओर गए और वहां घोरा क्षेत्र में छुपी पाकिस्तानी सेना के ठिकानों की जानकारी लेकर लौटे. पगी के इनपुट पर भारतीय सेना ने कूच किया. लड़ाई के दौरान रणछोड़दास ने सेना तक गोला-बारूद पहुंचाने का भी काम किया. उनकी इन सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति मेडल सहित कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. Next…

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