आश्चर्य होता है कि हजारों साल पहले आचार्य चाणक्य ने लोकव्यवहार और समाजिक जीवन के बारे में जो बाते लिखी थीं वह आज के समाज में भी कितना कारगर सिद्ध होता है. आचार्य चाणक्य ने न सिर्फ लोकव्यवहार के बारे में सैद्धांतिक बाते बताई हैं बल्कि सामाज के विभिन्न वर्ग के गुण-अवगुण और व्यवहार को बड़े ही सूक्ष्मता से वर्णित किया है. आज हम आपको बताएंगे कि चाणक्य ने स्त्री, ब्राह्मण और राजा की असली शक्ति के बारे में क्या कहा है.
चाण्क्य के अनुसार-
बाहुवीर्यबलं राज्ञो ब्राह्मणो ब्रह्मविद् बली।
रूप-यौवन-माधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम्।।
इस श्लोक में चाणक्य ने बताया है कि स्त्री हो या पुरुष, सभी के पास कुछ गुण, कुछ शक्तियां होती हैं जिनसे वे अपने कार्य सिद्ध कर सकते हैं.
चाणक्य के अनुसार ब्राह्मण की ताकत होती है ज्ञान. ब्राह्मण जितना ज्ञानी होगा वह उतना ही अधिक सम्मान प्राप्त होगा. वह ज्ञान जो ईश्वर और जीवन से संबंधित होता है, किसी भी ब्राह्मण की सबसे बड़ी निधि होती है जिसे वह अपनी शक्ति के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है.
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राजा के बारे में चाणक्य कहते हैं कि किसी भी राजा की शक्ति उसका स्वयं का बाहुबल है. राजा की शक्ति के बारे में चाणक्य के कथन को आज के संदर्भ में देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे तानाशाही का समर्थन कर रहे हैं जो कि आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनरूप नहीं माना जा सकता. हालांकि हम राजा के बाहुबल को हम उसके प्रशासकीय क्षमता से जोड़कर देख सकते हैं. चाणक्य कहते हैं कि वैसे तो किसी भी राजा के अधीन उसकी सेना, मंत्री और अन्य राजा रहते हैं लेकिन उसका स्वयं का ताकतवर होना भी जरूरी है. यदि कोई राजा स्वयं शक्तिहीन है तो वह किसी पर राज नहीं कर सकता. राजा जितना शक्तिशाली होगा उतना ही अच्छा शासक होगा.
स्त्रियों के बारे में चाणक्य कहते हैं कि सौंदर्य और मीठी वाणी स्त्री की सबसे बड़ी ताकत होती है. स्त्री अपने सौंदर्य और यौवन से अपना काम करा सकती है. लेकिन चाणक्य यह भी कहते हैं कि यदि कोई स्त्री सुंदर नहीं है लेकिन उसका व्यवहार मधुर है तब भी वह जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना कर लेती है. मधुर व्यवहार किसी भी स्त्री को मान-सम्मान दिलाता है. Next…
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