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अगर आपको भी लगता है मरने से डर तो यह आपके लिए है

‘मृत्यु’ पृथ्वी पर मौजूद सभी भाषाओं में सबसे कौतूहल भरे शब्दों में से एक है. इस शब्द को सुनते ही हर किसी के दिमाग में कुछ तस्वीर उभरती है. अलग-अलग लोगों के लिए यह तस्वीर अलग-अलग हो सकती है पर इसमें एक बात समान होती है. इस शब्द से उभरने वाली तस्वीर डरावनी होती है, चाहे वह तस्वीर किसी के भी जेहन में उभरे. कभी आपने सोचा है कि मृत्यु से इतना डर क्यों लगता है? आश्चर्य है कि पृथ्वी पर मौजूद किसी भी शख्स ने मृत्यु को न देखा है न अनुभव किया है फिर भी मृत्यु पर जितना लिखा गया है उतना कम ही विषय पर लिखा गया है.


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दरअसल हमें डर मृत्यु से नहीं लगता. हमे डर लगता है खो जाने से. हमें डर लगता है अज्ञात में भटक जाने से. मृत्यु का पैमाना जितना बड़ा होता है यह डर भी उतना ही सघन होता है, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में मृत्यु नामक अज्ञात स्थिति हमें अपने बेहद करीब नजर आती है. यही वजह है कि नेपाल भूकंप या इस तरह की त्रासदियां इतनी भयावह प्रतीत होती हैं.


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दुनिया में हर रोज लोग मरते हैं, पर छोटे पैमाने पर या अनजान जगहों पर होने वाली मौतों को हम नजरअंदाज कर देते हैं, पर जब मौत इतने बड़े पैमाने पर हो तो हम इसे नजरअंदाज नहीं कर पाते. ऐसा महसूस होता है कि इतने बड़े मौत के आंकड़ें में एक संख्या हम भी हो सकते थे. अब सवाल यह कि क्या हम मौत के डर से पार जा सकते हैं. भारत सहित पूरे विश्व में मृत्यु के डर को नियंत्रित करने के ये उपाय ईजाद किए गए हैं.



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मृत्यु के बाद जीवन- विश्व के कई संस्कृतियों में यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद भी एक जीवन है. स्वर्ग और नरक की कल्पना इसी सिद्धांत के आधार पर की गई है.


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भी उठ खड़े  होते हैं.


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पुनर्जन्म- यह सिद्धांत आश्वासन देता है कि एस जन्म में मृत्यु आखिरी बिंदु नहीं है. कुछ दिन मृत्यु के अज्ञात में गुजारकर आप फिर से जीवन को प्राप्त कर सकते हैं. यह नया जीवन भी आपके लिए अनजाना होगा लेकिन मृत्यु की अपेक्षा जीवन से आप कहीं अधिक परिचित हैं. इसलिए यह स्थिति आपके लिय उतनी डरावनी नहीं होगी जितनी की मृत्यु का अज्ञात.


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मोक्ष- इस सिद्धांत में एक ऐसी स्थिति की कल्पना की गई है जो जीवन और मृत्यु के पार है. यानी मृत्यु के डर से अनंत काल के लिए मुक्ति. भारत के तीन धर्म- हिन्दू, जैन और बौद्ध में इस सिद्धांत की मान्यता है. हिन्दू धर्म में तो मोक्ष प्राप्ति को मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ या लक्ष्यों में से एक माना गया है. अन्य तीन पुरुषार्थ धर्म, अर्थ और काम हैं.


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लेकिन सच्चाई यह है कि इन सभी सिद्धांतों के बावजूद अधिकांश मनुष्य मृत्यु के डर को झुठला नहीं सकते. हालांकि, धरती पर भगत सिंह जैसे लोग भी होते हैं जो मृत्यु को बिल्कुल सीधे और सपाट तरीके से देखते हैं. अपने लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ में भगत सिंह लिखते हैं- “मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फन्दा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा, वह पूर्ण विराम होगा – वह अन्तिम क्षण होगा. मैं या मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जायेगी. आगे कुछ न रहेगा. एक छोटी सी जूझती हुई जिन्दगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्वयं एक पुरस्कार होगी – यदि मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस हो.”


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सचमुच ऐसे लोगों के लिए मृत्यु एक एडवेंचर यानी साहसी खेल बन जाती है. एक ऐसा खेल जिसे खेलने का अवसर सिर्फ एक बार मिलता है. Next…

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