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शून्य के साथ बिजली भी दी थी भारत ने, वैदिक काल में होने लगा था उत्पादन

उज्जैन के प्रिंस लाइब्रेरी में एक ऐसा दस्तावेज मौजूद है जो यह प्रमाणित करता है कि प्राचीन भारत में भी लोग बिजली को उत्पादित करने और उसे प्रयोग करने की कला जानते थे. इस दस्तावेज का नाम है अगस्त्य संहिता और इसके लिखे जाने की तारीख 100 ईसा पूर्व है. इस ग्रंथ में सिर्फ विद्युत बैटरी के निर्माण की विधि विस्तार से बताई गई है, बल्कि इस बात का भी जिक्र है कि किस प्रकार पानी को उसके घटक गैसो में यानी ऑक्सीजन और हाईड्रोजन गैस में विभाजित किया जा सकता है. आधुनिक बैटरी अगस्त्य मुनि द्वारा वर्णित बैटरी से काफी मिलते जुलते हैं. अगस्त्य मुनि के अनुसार बैटरी के निर्माण में निम्नलिखित सामग्रियों का प्रयोग होता है-  एक मिट्टी का पात्र, कॉपर प्लेट, कॉपर सल्फेट, नम बुरादा, और जिंक अमेलगम.


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अगस्त्य संहिता के अनुसार-

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥ दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

यानी तांबे के एक प्लेट को मिट्टी के पात्र में रखें. इसे पहले कॉपर सल्फेट से कवर करें और फिर लकड़ी के नम बुरादे से. इसके बाद पारा-मिश्रित-जिंक की चादर उस उर्जा के ऊपर रख दें जिसे मित्र-वरूण के दो नामों से, जाना जाता है. इस तरह से 100 पात्रों की श्रृंखला एक सक्रिय एवं प्रभावी उर्जा उत्पन्न करेगी.


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जब अगस्त्य संहिता के अनुसार बैटरी बनाई गई तो उसका ओपन सर्किट वोल्टेज 1.138 वोल्ट और शॉर्ट सर्किट करेंट 23 मिलीएम्प मापा गया.

इस तरीके से बनी बैटरी को सबसे पहले 7 अगस्त 1990 में विज्ञान संशोधन संस्था की चौथी आम बैठक में विद्वानों के सामने प्रदर्शित की गई.  शोधकर्ताओं ने पाया कि इसके अलावा भी अगस्त्य मुनी ने कई बाते कहीं हैं.


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प्राचीन वैदिक टेकनोलॉजिस्ट 6 प्रकार की विद्युत उर्जा का उत्पादन करते थे-

तड़ित– जो चमड़े या रेशम के घर्षण से पैदा होता है

सौदामिनी– जो रत्नों या शीशे के घर्षण से उत्पन्न होता है

विद्युत– जो की बादल या वाष्प से पैदा होता है

शतकोटी– जो सौ सेल की बैटरी द्वारा उत्पन्न किया जाता है

अशानी– जिसे चुंबकीय छड़ों द्वारा पैदा किया जाता है... Next…


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