सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या देवस्थल के रूप में विख्यात है. आज लोग इसे दो कारणों से जाना जाता है जिनमें से एक राजा दशरथ और दूसरा राम जन्मभूमि है. अयोध्या नगर को बसाने वाले का नाम बहुत कम लोग जानते हैं. इस नगर को बसाने का काम किया था सूर्यवंश के राजा युवनाश्व ने. पौराणिक कथाओं में राजा युवनाश्व का वर्णन है. राजा युवनाश्व का कोई पुत्र नहीं था. राजा और रानी को पुत्र प्राप्ति की व्याकुलता था. लेकिन उनके अच्छे दिन अभी दूर थे. राजा युवनाश्व ने ऋषियों के परामर्शानुसार यज्ञ करने का संकल्प लिया.
एक दिन वन में भ्रमण करते उनकी मुलाकात च्यवन ऋषि से हुई. फिर राजा ने उन्हें अपनी समस्या बताई. च्यवन ऋषि ने राजा के लिए यज्ञ करना का निश्चय किया. यज्ञ के लिए मंडप का निर्माण किया गया और वह दिन भी आ गया जब यज्ञ की शुरूआत हुई. एक दिन यज्ञ के मंडप में ही राजा को नींद आ गई. गहरी नींद से जागने के बाद राजा को प्यास के कारण अपना कंठ सूखता प्रतीत होने लगा. लेकिन आसपास खोजने पर भी उन्हें कहीं जल का पात्र नहीं मिला. विवशता में उन्होंने मंडप में रखे पात्र का जल पी लिया और वापस सो गये.
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सवेरा होने पर पुरोहित ब्राह्णों ने मंडप में रखे जल के बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी. इस पर राजा युवनाश्व ने कहा कि उन्होंने पात्र में रखा वो जल पी लिया है. पुरोहितों को आश्चर्य हुआ. उन्होंने राजा को कहा, ‘महाराज आपने ये कैसा अनर्थ कर दिया? वह जल अभिमंत्रित था. रानी के लिए रखे उस जल में गर्भधारण की शक्ति थी. अब आपको ही गर्भधारण करना होगा. आप ही के पेट से संतान उत्पन्न होगा.’
राजा पुरोहितों की यह बात सुनकर बहुत मायूस हुए. लेकिन अब कोई उपाय नहीं बचा था. समय बीतने के साथ ही राजा ने गर्भधारण किया. अंत में राजा का पेट चीरा गया. राजा युवनाश्व के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ. इस बालक का नाम मांधाता रखा गया. लेकिन प्रसव के समय अत्यधिक कष्ट से राजा को अपने प्राण गँवाने पड़े. Next….
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