ताजमहल के निर्माण को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, कुछ सकारात्मक तो बहुत कुछ नकारात्मक भी. यह किंवदंतियां चाहे कुछ भी कहें पर इस बात से किसी को इंकार नहीं हो सकता कि मुहब्बत का मिशाल ताज दुनियाभर की मानव निर्मित सबसे खूबसूरत रचनाओं में एक है. शायद यही वजह है कि भारत आने वाला कोई भी गणमान्य व्यक्ति ताजमहल का एकबार दीदार करने का अपना मोह छोड़ नहीं पाता फिर वह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ही क्यों न हो.
मुमकिन है कि ओबामा को भी ताजमहल की खूबसूरती भौचक्का कर दे और उन्हें इस निर्माण के पीछे के व्यक्ति उसके जुनून का ख्याल तक न आए. सब जानते हैं कि अपनी बेगम मुमताज की याद में मुगल शहंशाह शाहजहां ने ताजमहल बनवाया. पर क्या आपको पता है कि इस खूबसूरत इमारत को बनाने के लिए शाहजहां को क्या-क्या कुर्बानियां देनी पड़ीं.
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दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल को बनाने में सिर्फ सिविल इंजीनियरिंग ही नहीं, बल्कि शाहजहां के जुनून का भी बहुत बड़ा हाथ था. जानकारों का मानना है कि ताजमहल बनाने के जुनून में शाहजहां ने अपने सारे शौक त्याग दिए थे. उन्होंने ताजमहल के निर्माण में लगे मजदूरों और कारिगरोंं को तब के मेहनताने से पांच गुना अधिक मेहनताना दिया था.
ताजमहल को बनाने के लिए बीस हजार मजदूरों की सेवा ली गई. इन मजदूरों की 22 साल की अथक मेहनत से यह अजूबा बनकर तैयार हुआ. ताजमहल बनाने के लिए जिन विशेषज्ञों को पर्शिया से बुलाया गया उन्हें आज से लगभग 361 साल पहले पंद्रह सौ रुपए प्रतिमाह के मासिक मेहनताने पर रखा गया जो उस समय के मेहनताने से कहीं ज्यादा था. यही नहीं मजदूरों को भी उस समय दिए जाने वाले मेहनताने से 5 गुना ज्यादा पैसे दिए थे जो उनकी मुंहमांगी कीमत के बराबर थे. सबसे निचले तबके के कारीगरों का भी मेहनताना उस समय दिए जाने वाले मेहनताने से औसतन पांच से दस गुना ज्यादा था.
शाहजहां की सोच थी कि जब कारीगरों को उनके कौशल के लिए सही दाम दिया जाएगा तो वे जुनून होकर काम करेंगे और उसका असर उसके परिणाम में भी साफ नजर आता है. उस समय इस खूबसूरत इमारत को बनाने की लागत 4 करोड़ 11 लाख 48 हजार रूपए आई थी. ताजमहल को बनवाने का शाहजहां का जुनून कुछ ऐसा था कि उन्होंने अपने सारे शौक त्याग दिए थे.. Next…
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