इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार आज भी प्रासंगिक है. हाल के वर्षों में हमने देखा कि विरोध का गांधीवादी तरीका कितना कारगर साबित हो सकता है. इस तरीके ने कई सरकारों को घूटने टेकने पर मजबूर कर दिया तो कई तनाशाहों का तख्ता पलट दिया. कई लोग भले ये कहें कि अब गांधी को मानने वाले कम होते जा रहे हैं, पर भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां गांधी को भगवान की तरह पूजा जाता है और गांव में उनको समर्पित एक मंदिर भी है.
यह मंदिर उड़ीसा के सम्बलपुर जिले के भटारा गांव में स्थित है. इस मंदिर में गांधी जी कि तांबे से बनी 6 फीट ऊंची मूर्ति है. गर्भ गृह में रखे गांधी जी की मूर्ति के ऊपर तिरंगा लहराता है वहीं दिवारों पर अंबेडकर आदि महापुरुषों की तस्वीरें लगी हुई है. मंदिर के प्रवेश द्वार पर भारत माता की मूर्ति और अशोक स्तम्भ बने हुए हैं. इस मंदिर के निर्माण की पहल गांधीवादी नेता अभिमन्यु ने की थी जिसे गांव वालों के आपसी सहयोग से बनाया गया.
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अभिमन्यु बताते हैं कि 1928 में महात्मा गांधी इस गांव में आए थे. यहां उन्होंने छुआ-छूत को खत्म करने के अभियान के चलाया था. उनकी सादगी और कर्मठता को देखकर यहां के ग्रामीण उनके भक्त बन गए. लेकिन सदियों से चली आ रही कुरीतियों को छोड़ना आसान बात नहीं थी, कई मंदिरों में “हरिजनों” का प्रवेश वर्जित था. 1971 में जब वे विधायक बने तो उन्होंने गांधी मन्दिर बनाने का प्रस्ताव ग्रामीणों के सामने रखा. सभी ग्रामीण इसके लिए तैयार हो गए. स्थानीय शिल्पकार दासगुप्ता द्वारा इस मंदिर का डिजाइन तैयार करवाया गया और 23 मार्च 1971 को इसकी आधारशीला रखी गई.
मंदिर के निर्माण में ग्रमीणों ने अपने सामर्थ्य अनुसार आर्थिक सहयोग किया. यहां स्थित गांधीजी की मूर्ति का निर्माण गंजाम जिले के खलीकोट आर्ट कॉलेज के छात्रों द्वारा किया गया. 11 अप्रैल 1974 को इस मंदिर का उद्घाटन उड़ीसा के तत्कालीन मुख्यमंत्री नंदिनी सतपथी द्वारा किया गया.
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गांधी जी के आदर्शों का पालन करते हुए एक दलित को इस मंदिर में पूजा अर्चना का काम एक दलित द्वारा किया जाता है. इस मंदिर में साल भर रामधुनी बजती है और ज्योत जलाई जाती है। 15 अगस्त, 26 जनवरी, गांधी जयंती और गांधी के शहादत दिवस के दिन यहां खास उत्सव होते हैं जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. इस दिन मंदिर में युवा नशे और हिंसा से दूर रहने की शपथ लेते हैं. Next….
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