भारत में देवताओं के प्रति लोगों की आस्था उनके अटूट भक्तिभाव को दर्शता है. गांव-शहर-मुहल्ले के अपने आस्था के प्रतीकों का होना इस देश में उतना ही सहज है जितना जीने के लिए हवा-पानी. अपने भगवान के प्रति लोगों की श्रद्धा का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज देश में तैंतीस करोड़ देवी-देवता विद्यमान हैं जिन्हें स्थापित करने के लिए लाखों-करोड़ों मंदिर का निर्माण किया जाता रहा है.
भगवान के प्रति लोगों की आस्था इतनी ज्यादा है कि विश्व के किसी भी कोने में उनका प्रतीक क्यों न हो भक्तगण उनकी आराधना करने के लिए पहुंच ही जाते हैं, लेकिन भारत में एक ऐसा सुर्य मंदिर का प्रतीक है जहां आज तक कभी पूजा नहीं हुई. ऐसी मान्यता है कि रात को इस मंदिर में आत्माओं के पायलों की झंकार सुनाई देती है. विज्ञान और टेकनोलॉजी के इस युग में यह सब जानकर आपको अटपटा लग रहा होगा लेकिन ये सच है.
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उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी रहस्यमयी कहानियों के लिए जाजा जाता है. मंदिर के निर्माण में ही कई तरह के रहस्य छुपे हुए हैं. कहा जाता है कि जहां पर मुख्य मंदिर था उसके गर्भगृह में सूर्यदेव की मूर्ति, ऊपर व नीचे चुम्बकीय प्रभाव के कारण हवा में हिलती थी. इसी चुम्बकीय प्रभाव के कारण ही समुद्री पोत दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे. दरअसल जब इस मंदिर का निर्माण कराया गया था उस समय समुद्र तट मंदिर के समीप ही था. वैसे कहा यह भी जाता है कि संध्या के बाद इस सूर्य मंदिर में नृत्य करती हुई आत्माओं की पायलों की झंकार सुनाई देती है.
कोणार्क का सूर्य मंदिर अद्वितीयता, विशालता व कलात्मकता की निशानी है. इसकी भव्य कृति को देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से यहां आते हैं. लगभग 750 साल पुरानी इस सूर्य मंदिर को जो भी देखता हक्का-बक्का रह जाता है. उसके लिए समझना बहुत ही कठिन हो जाता है कि आखिर यह मंदिर बना कैसी होगी.
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कोणार्क का सूर्य मंदिर कामुकता को भी एक नयी परिभाषा देता है. यहां बनी मूर्तियां पूर्ण रूप से यौन सुख का आनंद लेती दिखाई गई हैं. पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है. इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की अकृतियां भी एन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित हैं. मंदिर के कुछ स्थानों पर कामातुर आकृतियां, तो कहीं पर नारी सौंदर्य, महिला व पुरुष वादकों व नर्तकियों की विभिन्न भाव-भंगिमाओं को उकेरा गया है.
इतिहासकारों का मत है कि कोणार्क मंदिर का निर्माण 1253 से 1260 ई. के बीच हुआ था लेकिन कोणार्क मंदिर के निर्माणकर्ता, राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु के कारण मंदिर का निर्माण कार्य अधूरा रह गया था. इसके परिणामस्वरूप अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया. हालांकि ध्वस्त होने के कई अलग-अलग कारण आज भी बताए जाते हैं.
वैसे तो मंदिर में देखने के लिए बहुत कुछ है लेकिन इसकी भव्यता उसके रथ जैसे स्वरूप में है. मंदिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर से 24 पहिए बनाए गए जिनका व्यास तीन मीटर है. इन पहियों को खींचने के लिए 7 घोड़े बनाए गए. मंदिर की अद्भुत भयव्ता की वजह से युनेस्को द्वारा सन 1984 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था. Next….
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