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इस गाँव के हर घर में पलता है एक मोर

जहाँ अब मीडिया में पशु-पक्षियों के विलुप्त होने की ख़बरें पढ़ने को मिलती रहती है वहाँ किसी ख़बर की ऐसी शीर्षक चौंका सकती है, लेकिन ये सच है. बिहार में मोतिहारी से 36 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में एक ऐसा गाँव हैं जहाँ लगभग हर आँगन में मोर पाये जाते हैं. जानिए बिहार का यह गाँव कैसे बन गया मयूर-गाँव.


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बात तब की है जब भारतीयों को आज़ादी मिले तीन वर्ष बीत चुके थे. माधोपुर गोविंद गाँव के कुछ लोग बिहार के प्रसिद्ध सोनपुर पशु मेला को देखने गए थे. वहाँ से लौटते वक्त कोई एक मोर-मोरनी का एक जोड़ा अपने साथ लेकर आया. उस मोर-मोरनी को गाँव में खुला छोड़ दिया गया.


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मोर-मोरनी का वह जोड़ा उस गाँव में विचरण करते रहता था. गाँव के किसान उन्हें फसलों के बीज खिलाते थे. बदले में वह जोड़ा उनके खेतों के बीज नहीं खाता था. ग्रामीण स्वयं अन्य पशु-पक्षियों और बाहरी व्यक्तियों से उस जोड़े की रक्षा करते थे. उन्होंने उस जोड़े के लिए एक तालाब का निर्माण भी करवाया था.


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इसके बदले मोर-मोरनी उस गाँव के साँपों को खाकर ग्रामीणों की रक्षा करते थे. धीरे-धीरे उस जोड़े के प्रजनन के कारण माधोपुर-गोविंद गाँव में मोर की संख्या बढ़ने लगी. एक-दो साल पहले ऐसी स्थिति आ गई थी कि उस गाँव में तकरीबन 500 से भी अधिक मोर पाए जाने लगे. आज लगभग उस गाँव के हर आँगन में मोर पाया जाता है.


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इसलिए बीते वर्षों में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस गाँव की ओर ध्यान देना शुरू किया है. यह विभाग उस गाँव में मोरों के लिए प्राकृतिक आवास बनाने पर काम कर रही है. इसके साथ ही उनकी सुरक्षा और उनके अनुकूल वातावरण बनाने पर भी काम शुरू हो चुका है. मोर के उस जोड़े को गाँव में कौन लाया इस पर संशय होने के बावजूद उस गाँव के लोगों का यह प्रयास विलुप्त होते पशु-पक्षियों को बचाने की दिशा में लगे लोगों के लिए संजीवनी का काम करेगी. Next…..



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