उसकी कलम… उसके गीत… उसकी कविताएं और उसकी वो दर्द भरी शायरी जिसे आज भी यह संसार याद करता है. एक ऐसा कवि जिसने लोगों को अपनी कविताओं व शायरी से ऐसे बांध दिया जैसे मानो कुएं की बाल्टी रस्सी से बंधी हो जिसे उससे अलग कर पानी निकालने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता.
काफी कम उम्र में साहित्य अकादमी का पुरस्कार जीतने वाले इस कवि की ज़िंदगी में बसंत कभी नहीं आया. कहते हैं शिव को सफलता तो मिली लेकिन उनमें उस सफलता को जीने की भूख नहीं थी. उनकी शायरी का वो दर्द उनकी मायूसी को बयां करता था.
कौन थे शिव कुमार बटालवी
23 जुलाई, 1936 को सियालकोट के बारा नाम के पिंड(गाँव) में जन्मे शिव कुमार एक ब्राह्मण परिवार से नाता रखते थे. 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे में शिव और उनका परिवार हिंदुस्तान के पंजाब में गुरदासपुर के बटाला जिले में आकर बस गया. शिव बटाला के थे इसलिए उनके नाम के साथ ‘बटालवी’ जुड़ गया.
शिव ने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक किया था और बाद में उन्होंने एक पटवारी के तौर पर नौकरी की थी, लेकिन उनका मन तो कहीं और ही था. शब्दों में अपने रुचि को देखते हुए शिव कभी-कभी कुछ कविताओं की रचना करते और उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का प्रयास भी करते. उनकी कविताओं को बहुत सराहा गया.
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फिर मिली शिव को वो…
साहित्य में शिव की रुचि इतनी बढ़ गई थी कि वे उन लोगों के साथ समय बिताने लगे जो या तो लेखक थे या फिर कवि या शायर. मूल रूप से उन्होंने अपनी जिंदगी को साहित्य और उनसे जुड़े लोगों में बांध लिया. इस बीच शिव को कोई ऐसा मिला जिसे वो मरते दम तक भी भुला ना पाए.
पंजाबी साहित्य के जाने माने लेखक गुरबख्श सिंह की पुत्री से शिव की मुलाकात हुई. दोनों में एक अजब सी भावना उत्पन्न होने लगी जो धीर-धीरे प्यार में तबदील हो गई लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
‘होनी’ को होनी थी…
लेखक गुरबख्श सिंह ने जल्द से जल्द अपनी बेटी की शादी अमेरिका में करवा दी और वो शिव और देश को छोड़ हमेशा के लिए विदेश चली गई. अभी वो गई ही थी कि शिव की पूरी जिंदगी जैसे शीशे-सी चूर-चूर हो गई. वे दर्द में डूबते जा रहे थे. शराब व नशे ने उन्हें सहारा दिया लेकिन दिल का दर्द उससे भी कुछ कम नहीं हो रहा था.
कहते हैं इस समय में शिव ने ऐसी-ऐसी शायरी लिखी जो उनके अंदर की मायूसी को बयां करती थी. शिव के बारे में लोगों के बीच एक कहानी यह भी प्रचलित है कि उस लड़की के जाने के बाद वो बहुत शराब पीते थे और शराब पीने के बाद रात में सुनसान सड़क पर निकल जाते थे. वे नहीं जानते थे कि वे कहां जा रहे हैं लेकिन इतने नशे में भी वे खूबसूरत शब्दों से शायरी लिखा करते थे.
रास्ते में या शराब के ठेके पर किसी भी चीज को उठाकर वे दीवारों पर शायरी लिखा करते थे जिसे अगले दिन उनका भाई सब जगह से खोजकर कॉपी में लिखकर लाता था. ऐसे शिव की वो शायरी सारी दुनिया तक पहुंची थी.
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शिव का दर्द भरा गीत
जिस समय शिव कुमार बटालवी को उस लड़की ने छोड़ा था तब उन्होंने ना केवल शायरी लिखी, बल्कि उनके कुछ गीतों ने भी संसार में प्यार व उसके दर्द को कण-कण में फैला दिया. उनका एक प्रसिद्ध गीत है:
‘माय नी माय
मैं इक शिकरा यार बनाया
उदे सिर दे कलगी
ते उदे पैरी झांजर
ओ चोग चुगिंदा आया
इक ओदे रूप दी धुप तिखेरी
ओ दूजा मेखा दा तिरखाया
तीजा ओदा रंग गुलाबी
ओ किसे गोरी मां दा जाया…..
अर्थ: मां मैंने एक उड़ जाने वाले पंछी को अपना यार बनाया है. उसके माथे पर कलगी है और उसके पांव में सुंदर पायल है और वो मेरे पास दाना चुगता हुआ आया है. उसके रूप के निखार ने मुझे मोह लिया है… वो बहुत सुंदर है और लगता है कि उसे किसी गोरी मां ने पैदा किया है.
इस गाने के बोल से शिव ने अपनी उस प्रेमिका का रूप, व्यवहार व अंत में उसके द्वारा मिले हुए दर्द को लोगों के सामने प्रस्तुत किया था.
उसने पूरी दुनिया को बताई यह बात
शिव की शायरी और गीतों ने उसके प्यार को पूरी दुनिया में आग की तरह फैला दिया था. कहते हैं कि जब उस लड़की ने उसके पति व उसके पहले बच्चे को जन्म दिया था तब भी शिव ने एक गीत लिखा था. इसके बाद जब उसने दूसरे बच्चे को जन्म दिया तब भी शिव को उसके चाहने वालों की ओर से एक और गीत बनाने के लिए उक्साया गया लेकिन इसपर शिव ने एक रूठा हुआ जवाब दिया. वे बोले, “क्या मैंने उसकी जिम्मेदारी ली हुई है… वो बच्चे पैदा करती रहे और मैं गीत लिखता रहूं.” पंजाबी अनुवाद में यह और भी गहराई वाला लगता है- की मैं ओदा ठेका लेया होया है… ओहो बच्चे बनाई जावे ते मैं ओदे ते कविता लिखदा रवां.
फिर की शिव ने शादी
अखिरकार वर्ष 1967 में शिव ने अपने परिवार के कहने पर एक ब्राह्मण लड़की से शादी कर ली. उनकी शादी से जुड़ी एक और बात प्रचलित है कि उन्होंने उस लड़की से सिर्फ इसलिए शादी की क्योंकि उसका चेहरा उनकी प्रेमिका से काफी मिलता-जुलता था जिसे देखने का ख्वाब वे दिल में पालते थे.
शिव की इस शादी से उन्हें दो बच्चे भी हुए. कुछ समय बाद शिव ने चंडीगढ़ में एक बैंक में नौकरी भी की. इस बीच उन्होंने खूब पैसा भी कमाया लेकिन दिल के दर्द के सामने कई बार धन-दौलत भी राख के समान लगने लगती है.
शिव की आखिरी सांसें
शिव की मृत्यु 7 मई, 1973 में पंजाब के पठानकोट में हुई थी जब वे केवल 36 वर्ष की आयु के थे. शिव कुमार बटालवी दुनिया के तो चले गए लेकिन पीछे छोड़ गए उनके शब्दों की ताकत व प्यार जिससे वे लोगों का मन जीत लिया करते थे. उनकी कविताओं का दर्द भी लोगों को अच्छा लगता है. आज भी उनके जन्मदिन के अवसर पर हर साल विदेशों में बस रहे भारतीय ‘बटालवी दिवस’ मनाते हैं और उन महान कवि को याद करते हैं जिसनकी पंजाबी साहित्य में इतनी बड़ी देन है. ना केवल विदेशों में, बल्कि यहां भारत में भी उन्हें उनके प्रशंसक दिलो-जान से याद करते हैं.
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