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इस गांव के लोग परिजनों के मरने के बाद छोड़ देते हैं अपना आशियाना

क्या अपने प्रियजनों की यादों को भूलना, उससे जुड़ी चीज़ों से किनारा करना इतना आसान होता है? क्या परिजनों के मरने पर कोई अपना पुराना घर छोड़ नए घर का निर्माण करता है? शायद हर कोई ये नहीं कर सकता परंतु कुछ लोग ऐसा करते हैं.



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लेकिन ये लोग अपनी इच्छानुसार ऐसा नहीं करते. फिर ऐसी क्या बात है कि उन्हें अपना पुराना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ता है. यहाँ आपको वो कारण पता चलेगा जिसे पढ़ कर आप रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकेंगे.



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भारत के कुछ राज्यों में एक समुदाय ऐसा है जो किसी अन्य जनजाति या समुदाय के लोगों से मिलना-जुलना या बातें करना ज्यादा पसंद नहीं करते. इस जनजाति की महिलाएँ शरीर के सभी हिस्सों पर अलग-अलग तरह के टैटू बनवाती हैं. इनके यहाँ टैटू बनाने की प्रथा बहुत पुरानी है जो आजकल शहरी युवाओं में बड़ी तेजी से फैलती जा रही है. यहाँ टैटू बनाने वाली महिलाओं को गोधरिन कहा जाता है.



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बैगा नाम से मशहूर इस जनजाति की महत्तवपूर्ण विशेषता यह है कि किसी परिजन के मौत के बाद ये अपना घर छोड़ देते हैं. फिर ये कहीं और भूमि तलाशते हैं तथा उस भूमि पर नए घर का निर्माण करते हैं. वहाँ नए सिरे से अपनी गृहस्थी बसा कर अपनी बची ज़िंदगी की शुरूआत करते हैं. ये जनजाति मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में निवास करती है.


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मध्य भारत में ही एक और जनजाति है जिसे गोंड के नाम से जाना जाता है. इस जनजाति के लोग अपने यहाँ आने वाले आगंतुकों का स्वागत उन्हें तंबाकू के सूखे पत्ते देकर करते हैं. आधुनिक समाज की तरह इस जनजाति के लड़के-लड़कियाँ विवाह के लिए अपने साथी का चयन खुद करते हैं जिसे बाद में अपनी जनजाति के ही एक परिषद से अनुमति लेनी पड़ती है. इस जनजाति में लड़के-लड़कियों का अनुपात 1:5 है.



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