कहते हैं हड़बड़ी का काम गड़बड़ी का परंतु, ऐसा नहीं है. समय की हड़बड़ी और किसी की गड़बड़ी कभी सार्वजनिक परिवहन के स्तर को सुधारने में मददगार साबित हुई है.
बात तब की है जब भारतीय रेलवे में शौचालय नहीं हुआ करते थे. उस समय लोग प्राकृतिक बुलावा आने पर किस मुश्किल में पड़ जाते होंगे इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है. ऐसे ही वर्ष 1906 में अहमदपुर स्टेशन से गुजरते वक्त एक रेलगाड़ी में हुआ कुछ ऐसा कि उसके बाद भारतीय रेलगाड़ियों में शौचालय की व्यवस्था की शुरूआत हुई.
हुआ यह कि रेलगाड़ी के अहमदपुर स्टेशन पर रूकते ही एक नियमित यात्री शौच के लिए नीचे उतरा. अभी वो शौच से निवृत्त भी नहीं हो पाया था कि गार्ड ने रेलगाड़ी चलाने के लिए सीटी बजा दी. इससे शौच पर बैठा वह यात्री हड़बड़ा गया. एक हाथ में लोटा उठा और दूजे में जैसे-तैसे धोती पकड़ वो बेतहाशा दौड़ने लगा. गाड़ी आगे-आगे और वो गाड़ी के पीछे-पीछे. पटरी पर रेलगाड़ी दौड़ रही थी और प्लेटफॉर्म पर वो कर्मचारी. तभी उसकी धोती लटपटाई और वो औंधे मुँह प्लेटफॉर्म पर गिर पड़ा.
वहाँ खड़ी भीड़ में से कुछ उसे देख रहे थे और कुछ उसकी दशा पर मुसकुरा रहे थे. उसे शर्मिंदगी महसूस हुई. उसने संबंधित अधिकारियों को एक पत्र लिखा जिसमें उसने अपनी दुर्गति का ज़िक्र किया. इसके अलावा उसने उस पत्र में लिखा कि क्या रेलगाड़ी के गार्ड को मेरे शौच से आने तक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी. इसलिए उस गार्ड पर बड़ा जुर्माना ठोंका जाना चाहिए, नहीं तो मैं समाचारपत्र में बड़ी रिपोर्ट छपवाऊँगा.
अंग्रेज़ी में लिखा उसका यह पत्र आप खुद पढ़ें…
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