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माता ने ही अपनी मूर्ति दी, खुद ही इंजीनियर हायर किया और बनवाया अपना मंदिर. कलियुग में माता के चमत्कार की एक अविश्वसनीय कहानी

परंपराओं और मान्यताओं के धनी भारत देश के पौराणिक इतिहास पर नजर डाली जाए तो यह स्पष्ट प्रमाणित होता है कि भारतीय लोगों के जीवन में आस्था और चमत्कार बहुत बड़ा महत्व रखते हैं. यही वजह है कि आज हमारे देश में जहां अनेक धर्मों और संप्रदायों के लोग वास करते हैं वहीं उनकी आस्थाओं से जुड़े कई मंदिर, मस्जिद और अन्य पूजा स्थलों का निर्माण किया गया है. मुंबई स्थित महालक्ष्मी मंदिर के विषय में तो आपने सुना ही होगा. हिंदू धर्म का एक विशिष्ट पूजा स्थल माने जाने इस मंदिर की स्थापना के पीछे भी एक ऐसा चमत्कार है जिस पर विश्वास कर पाना बहुत से लोगों के लिए कठिन हो सकता है, लेकिन जो लोग ईश्वरीय शक्ति पर आस्था रखते हैं उनके लिए यह दैवीय शक्ति का एक और उदाहरण है.


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मुंबई के भूलाभाई देसाई मार्ग पर स्थित यह मंदिर महालक्षी देवी को समर्पित है. इस पूजा स्थल का निर्माण सन 1831 में धाक जी दादाजी नाम के एक हिन्दू व्यापारी ने करवाया था.


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इस मंदिर का इतिहास मुंबई के वरली और मालाबार हिल से जोड़ा जाता था. इस स्थान को आज ब्रीच कैंडी भी कहा जाता है. मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि जब इस मंदिर का निर्माण चल रहा था तब इसके दोनों क्षेत्र को जोड़ने वाली दीवार बार-बार ढह रही थी. यद्यपि इसका निर्माण ब्रिटिश इंजीनियरों द्वारा करवाया जा रहा था और वह भी यह समझने में असफल साबित हो रहे थे कि आखिर इस दीवार के गिरने का कारण क्या है.


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ऐसे में इस प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर जो एक भारतीय थे, के सपने में स्वयं माता महालक्ष्मी ने दर्शन दिए और वरली के पास समुद्र में अपनी मूर्ति होने की बात कही.


माता के दिए हुए निर्देशों के अनुसार चीफ इंजीनियर को उसी स्थान पर महालक्ष्मी की मूर्ति मिल गई.  इस आश्चर्यजनक घटना के बाद चीफ इंजीनियर ने इसी जगह पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और उसके बाद बड़े मंदिर का निर्माण कार्य बड़ी आसानी से संपन्न हो गया.


यह मंदिर हाजी अली दरगाह के साथ वरली के समुद्र तट पर स्थित है. इससे महालक्ष्मी मंदिर को देखा जा सकता है. इस मंदिर के अंदर देवी महालक्ष्मी, महाकाली और सरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं. तीनों ही मूर्तियां सोने के गहनों से सुसज्जित हैं.


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