किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए अपने निकट परिजन से बिछुड़ने का गम असहनीय होता है. प्राय: देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति अपने प्राण त्याग देता है तो उसका परिवार और करीबी दोस्त शोकाकुल होकर उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस दुनियां में मान्यताओं और परंपराओं में भिन्नता होना एक ऐसा सत्य है जिसे कभी और किसी भी रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ऐसे में भिन्न-भिन्न तरीके और रिवाजों के साथ मृत्यु समेत जीवन के अन्य घटनाक्रमों को संपन्न करना भी स्वाभाविक है.
दुनियां से निराला बाली द्वीप एक ऐसा स्थान है जहां मृत्यु को शोक नहीं बल्कि एक उत्सव की तरह मनाया जाता है. अन्य समुदायों या स्थानों में जहां परिवारजन की मृत्यु असहनीय दर्द और भावुक क्षणों को पीछे छोड़ जाती है वहीं बाली द्वीप समूह में यह किसी पर्व से कम नहीं होता. यहां जब भी कोई मरता है तो परिवार के अन्य सदस्य नाच-गाना शुरू कर देते हैं. उनका यह उल्लास और पर्व काफी लंबे समय तक चलता है. बाली निवासियों का मानना है कि मृत्यु के पश्चात आत्मा सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है इसीलिए पारिवारिक सदस्यों को उत्साहित होकर आत्मा के बंधन मुक्त होने की खुशियां मनानी चाहिए.
जब किसी परिवार में मृत्यु होती है तो उस परिवार के लोग रंग-बिरंगी पोशाकों में शव को अंतिम विदाई देते हैं. युवतियां महंगे और चमकीले आभूषण पहनकर निकलती हैं. बालों में सुंदर फूल लगाकर और बैंड बाजे के साथ सब बाहर निकलते हैं और साथ-साथ चलती हुई मृदंग की ध्वनि पर्व जैसा अहसास करवाती है. जुलूस की तरह शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है. जुलूस के आगे-आगे रेशमी कपड़ों और फूल-मालाओं से लिपटा एक साठ फीट लंबा स्तंभ चलाया जाता है और इस स्तंभ के अंदर ही शव को रखा जाता है.
उल्लेखनीय है कि बाली द्वीप के लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी सशक्त नहीं होती कि वह शव का अंतिम संस्कार कर पाएं इसीलिए अधिकांश लोगों को अपना घर तक बेचना पड़ता है. लेकिन बाली-निवासी के लिए इससे बढ़कर और क्या बात होगी, जो उसने किसी मृत व्यक्ति की आत्मा के लिए अपना घर-बार बेचकर भी अपने कर्त्तव्य का पालन किया.
जब कोई मरता है तो उसके घर के बाहर घी का दिया जलाया जाता है और शव को ठीक दहलीज पर रखकर शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा की जाती है. कभी-कभी तो दफनाने का यह शुभ मुहूर्त कई दिनों तक नहीं आता.
Read More:
Read Comments