रमजान का मुबारक महीना है और जल्द ही ईद का चांद भी नजर आने वाला है. भारत जोकि एक धर्मनिरपेक्ष देश है वहां हर त्यौहार मनाने का मजा भी कुछ अलग ही होता है. रमजान की रौनक बाजारों में खूब नजर आ रही है और सभी मुस्लिम धर्म के अनुयायी रोजे के बाद अब ईद का इंतजार कर रहे हैं. रमजान के इस महीने को अल्लाह की तरफ से ईनाम लेने के महीने के रूप में भी जाना जाता है.
जिस तरह हर धर्म की मान्यताएं, उसका पालन करने के तरीके अलग-अलग होते हैं वैसे ही इस्लाम की भी अपनी कुछ विशेषताएं हैं. आज हम आपको नमाज पढ़ने से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां देने जा रहे हैं जिन्हें जानने के बाद आब इस्लाम धर्म को और करीब से समझ पाएंगे:
इस्लाम धर्म के अनुयायी नमाज पढ़ने की महत्ता को भली प्रकार समझते हैं. नमाज, सलाह या सलात का जिक्र कुरान शरीफ में बार-बार किया गया है और इस्लाम धर्म से जुड़े प्रत्येक महिला और पुरुष को दिन में 5 वक्त की नमाज पढ़ने का हुक्म दिया कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज पढ़ने का आदेश दिया है. नमाज पढ़ना प्रत्येक मुसलमान को कर्तव्य के रूप में दिया गया है, जिसे पुण्य और पाप के साथ भी जोड़ा गया है.
नमाज को दिन में 5 बार पढ़ने का विधान है, जिसमें नमाज -ए- फजर (सूर्योदय से पूर्व), नमाज-ए-जुह्ल (सूर्य के ढलना शुरु होने पर), नमाज-ए-अस्र (सूर्य के अस्त होने के थोड़ी देर पहले), नमाज-ए-मगरिब (सूर्यास्त के तुरंत बाद), नमाज-ए-अशा (सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी), शामिल है.
इस्लाम में पांच मौलिक स्तंभ भी बताए गए हैं, जिनमें कलिमा-ए-तयैबा, नमाज, रोजा, जकात और हज शामिल है.
नमाज पढ़ने के पीछे एक बहुत बड़ा और सामाजिक कारण भी है, क्योंकि नमाज पढ़ने वाला व्यक्ति कभी किसी के साथ गलत नहीं करता और किसी के पैसे पर नजर नहीं रखता. कायदे के अनुसार हर नमाज को इतनी शिद्दत से अदा करना चाहिए जैसे कि वो जीवन की आखिरी नमाज हो.
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