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महाभारत युद्ध में अपने ही पुत्र के हाथों मारे गए अर्जुन को किसने किया पुनर्जीवित? महाभारत की एक अनसुनी महान प्रेम-कहानी

महान धनुर्धर अर्जुन हमेशा अजेय माने जाते रहे हैं. महाभारत में अर्जुन के समान धनुर्धर और कोई नहीं बन सका इसके बावजूद अर्जुन कई जगह हारे. द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी मानी गई हैं पर वह मुख्य रूप से अर्जुन की प्रिय थीं. अर्जुन ने ही धनुर्विद्या से द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था और उनसे विवाह किया था. कुंती के अनायास ही फल बांटकर खा लेने के कथन का पालन करते हुए द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी बन गईं लेकिन वह हमेशा अर्जुन-प्रिया मानी गईं. इसके बावजूद अर्जुन कई बार कई और के प्रेम में पड़े और कई विवाह किया. अभिमन्यु के अलावे भी अर्जुन के तीन और पुत्र थे और अपने ही पुत्र के द्वारा अर्जुन महाभारत युद्ध में मारे भी गए. पर हर किसी से जीते हुए अर्जुन को इस हार में एक स्त्री ने जीवनदान दिया था. यहां हम आपको बता रहे हैं द्रौपदी के अलावे अर्जुन की अन्य प्रेम-कहानियां और जीवन-दान की कहानी:


Mahabharata war



सुभद्रा-अर्जुन प्रेम विवाह

कृष्ण की बहन सुभद्रा से अर्जुन का प्रेम विवाह था. इससे पहले ही अर्जुन द्रौपदी से विवाह कर चुके थे. सुभद्रा से अर्जुन का दूसरा विवाह था और यह किसी परेशानी या दबाव में नहीं हुआ था बल्कि अर्जुन खुद यह विवाह करना चाहते थे क्योंकि वे और सुभद्रा एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे.


सुभद्रा का भाई गदा और अर्जुन ने साथ ही द्रोणाचार्य के गुरुकुल में शिक्षा ली थी. बाद में द्वारका जाने पर अर्जुन की मुलाकात सुभद्रा से हुई और उन दोनों में प्रेम हो गया. कृष्ण की प्रेरणा से अर्जुन ने सुभद्रा से ब्याह भी रचा लिया पर द्रौपदी को यह बताने की हिम्मत नहीं कर सके. इसलिए सुभद्रा जब पहली बार द्रौपदी से मिलीं तो अर्जुन की पत्नी होने की बात द्रौपदी को नहीं बताई. बाद में जब दोनों एक-दूसरे से घुल-मिल गए तो सुभद्रा ने खुद के अर्जुन की दूसरी पत्नी होने की बात बताई.



Subhadra Arjuna Marriage



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चित्रांगदा-अर्जुन प्रेम विवाह

मणिपुर राज्य की राजकुमारी चित्रांगदा बेहद खूबसूरत थीं. एक बार किसी कारणवश मणिपुर गए अर्जुन ने उन्हें देखा और देखते ही उन पर मोहित हो गए. अर्जुन ने चित्रांगदा के पिता और मणिपुर के राजा चित्रवाहन से चित्रांगदा के साथ अपनी विवाह की इच्छा बताई. चित्रवाहन विवाह के लिए मान तो गए लेकिन एक शर्त रख दी कि चित्रवाहन के बाद अर्जुन और चित्रांगदा का पुत्र ही मणिपुर का राज्य भार संभालेगा. अर्जुन मान गए और इस तरह चित्रांगदा के साथ अर्जुन का विवाह भी हो गया. चित्रांगदा के साथ अपने पुत्र बभ्रूवाहन के जन्म होने तक अर्जुन मणिपुर में ही रहे. बभ्रूवाहन के जन्म के बाद वे पत्नी और बच्चे को वहीं छोड़ इंद्रप्रस्थ आ गए. चित्रवाहन की मृत्यु के बाद बभ्रूवाहन मणिपुर का राजा बना. बाद में महाभारत युद्ध के दौरान बभ्रूवाहन ने दुर्योधन की ओर से युद्ध भी किया और अर्जुन को भी हराया.



Arjuna and chitrangada



उलूपी

जल राजकुमारी उलूपी अर्जुन की चौथी पत्नी थीं. महाभारत और अर्जुन के जीवन में उनके बहुत योगदान थे. उन्हीं ने अर्जुन को जल में हानि रहित रहने का वरदान दिया था. इसके अलावे चित्रांगदा और अर्जुन के पुत्र बभ्रूवाहन को भी उसी ने युद्ध शिक्षा दी थी. महाभारत युद्ध में अपने गुरु भीष्म पितामह को मारने के बाद ब्रह्मा-पुत्र से शापित होने के बाद उलूपी ने ही अर्जुन को शापमुक्त भी किया था और इसी युद्ध में अपने पुत्र के हाथों मारे जाने पर उलूपी ने ही अर्जुन को पुनर्जीवित भी किया था.


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अर्जुन और उलूपी की प्रेम-कहानी शुरू भी एक प्रकार के शाप से ही हुई थी. द्रौपदी जो पांचों पांडवों की पत्नी थीं एक-एक साल के समय-अंतराल के लिए हर पांडव के साथ रहती थी. उस समय किसी दूसरे पांडव को द्रौपदी के आवास में घुसने की अनुमति नहीं थी. इस नियम को तोड़ने वाले को एक साल तक देश से बाहर रहने का दंड था. एक बार जब द्रौपदी युद्धिष्ठिर के साथ थीं तब अर्जुन ने यह नियम तोड़ दिया.






अर्जुन और द्रौपदी की एक वर्ष की अवधि अभी-अभी समाप्त हुई थी और द्रौपदी-युधिष्ठिर के साथ का एक वर्ष का समय शुरू हुआ था. अर्जुन भूलवश द्रौपदी के आवास पर ही अपना तीर-धनुष भूल आए. पर किसी दुष्ट से ब्राह्मण के पशुओं की रक्षा के लिए लिए उन्हें उसी समय इसकी जरूरत थी. अत: क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए तीर-धनुष लेने के लिए नियम तोड़ते हुए वह पांचाली (द्रौपदी) के निवास में घुस गए. बाद में इसके दंड स्वरूप वह एक साल के लिए राज्य से बाहर चले गए. इसी दौरान अर्जुन की मुलाकात उलूपी से हुई और वह अर्जुन पर मोहित हो गईं. वह अर्जुन को जलनगर भी ले गईं. उन्होंने अर्जुन को वरदान दिया कि सभी जल-प्राणी उसका कहा मानेंगे और उन्हें पानी में कोई नुकसान नहीं होगा.


बाद में महाभारत युद्ध में जब अर्जुन अपने ही पुत्र बभ्रूवाहन के हाथों मारे गए तो उलूपी ने अर्जुन को दुबारा जीवित भी किया. बभ्रूवाहन को पता नहीं था कि वह अर्जुन का पुत्र है, अत: जीवित होने के पश्चात अर्जुन और बभ्रूवाहन को एक साथ लाने में भी उलूपी का बहुत बड़ा हाथ था.


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