पुराणों में हिन्दू देवी-देवताओं से जुड़े कई किस्से व्याप्त हैं. धर्म ग्रंथों का जिक्र करें तो जिन 33 करोड़ देवी-देवताओं की बातें हम करते हैं उनसे जुड़ी कोई ना कोई घटना का उल्लेख उनमें जरूर होता है. भारत विभिन्नताओं का देश है और यहां कदम-कदम पर धार्मिक मतावलंबियों की आस्था में भी विभिन्नता देखी जा सकती है लेकिन किसी ना किसी रूप या अवतार में भगवान राम का संबंध लगभग सभी धर्मों में देखा जा सकता है. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का उल्लेख एक ऐसे पुत्र, पति और राजा के तौर पर होता आया है जिन्होंने ‘प्राण जाए पर वचन ना जाए’ की अवधारणा पर अपना पूरा जीवन बिता दिया. मर्यादाओं के घेरे में घिरे राम ने अपने सभी कर्मों को धर्म के अनुसार पूरा किया है. सीता हरण और भगवान श्रीराम द्वारा अपनी पत्नी को रावण की कैद से मुक्त करवाए जाने जैसी घटना के बारे में सभी ने सुना होगा और आज हम इसी घटना से जुड़े एक ऐसे रहस्य से पर्दा उठाने जा रहे हैं जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं:
अपनी बहन शूर्पणखा की कटी नाक का बदला लेने के लिए साधु का भेष बदलकर असुर रावण, भगवान श्रीराम की पत्नी सीता को हरने के लिए उनकी कुटिया पहुंचा.
सीता के लंका के राजा रावण के पास होने की खबर मिलने के बाद भगवान राम ने हनुमान को अपना दूत बनाकर सीता के पास ये संदेश पहुंचाने के लिए भेजा कि वह जल्द ही उन्हें मुक्त करवाने आएंगे.
लेकिन ये सवाल हर समय उठता है कि जब हनुमान स्वयं इतने शक्तिशाली और ताकतवर थे तो उन्होंने स्वयं सीता को रावण की कैद आजाद क्यों नहीं करवाया? सिर्फ संदेश पहुंचाकर ही क्यों वह वापस लौट आए?
असल में पवनपुत्र हनुमान ने माता सीता से आग्रह किया कि वह उनके साथ यहां से चलें. लेकिन सीता ने ये कहकर उनके आग्रह को टाल दिया कि वह किसी पर पुरुष को छू नहीं सकतीं.
इस पर हनुमान ने उनसे कहा कि वह उनके पुत्र के समान हैं और अगर कोई माता अपने पुत्र को छूती है तो वह पाप नहीं होता.
हनुमान का कथन भी सही था लेकिन सीता ने फिर भी उनके साथ चलने से मना कर दिया. सीता ने हनुमान से कहा कि उनका काम सिर्फ संदेश पहुंचाना था और ये काम वे भली-भांति कर चुके हैं. इसके अतिरिक्त उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं थी इसलिए अब वह चले जाएं.
असल में सीता को डर था कि अगर वह हनुमान के साथ लंका छोड़ देंगी तो उनके पति यानि भगवान श्रीराम के विषय में संसार तक गलत संदेश पहुंचेगा. संसार में उनकी अपकीर्ति होगी और वह असुर सम्राट राजा रावण को दंडित भी नहीं कर पाएंगे.
पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान के साथ सीता के लंका से वापस ना आने का एक और कारण भी है. रावण समेत अनेक श्रापित लंकावासियों की नियती थी कि वे किसी अवतारित पुरुष के लंका आगमन के बाद ही उन्हें संबंधित श्राप से मुक्त होंगे, इसलिए भगवान श्रीराम का लंका जाना आवश्यक था.
अनेक किस्सों में एक ये किस्सा भी है, अब पुराणों की बातें झुठलाई नहीं जा सकतीं इसलिए भगवान राम की महिमा का ये उदाहरण भी खूब रहा.
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