कब्र और कब्रिस्तान की कहानियां हमेशा डरावनी होती हैं. पर यह जो कहानी हम बताने जा रहे हैं वह डरावनी तो है पर इससे जुड़ी वह बच्ची इतनी प्यारी है कि आप भी इससे जुड़ा महसूस करेंगे. कब्र में सोई वह बच्ची आज जिंदा होने का एहसास देती है पर वह जिंदा है नहीं. वर्षों से इसी तरह वहां वह रही है. हो सकता है उसकी प्यारी सूरत देखकर आप उसे कब्र से उठता देखना चाहें लेकिन सच यही है कि वह एक मुर्दा है जिंदा इंसान नहीं.
दुनियां का इतिहास जितना पुराना है उतना ही अद्भुत और रोचक भी. विभिन्न देशों की अपनी विशेषता और विशिष्टता तो है ही साथ ही सदियों पुरानी उनकी मान्यताएं और परंपराएं भी अपने आप में अनोखी और विचित्र हैं.
इटली दुनियां के प्राचीनतम देशों में से एक है. यही वजह है कि प्राचीन इटली निवासियों की परंपराएं जितनी पुरानी हैं उससे कहीं ज्यादा ये तत्कालीन समाज में व्याप्त रहस्यमयी और अविश्वसनीय मान्यताओं को भी बयां करती हैं.
इटली के सिसली नगर में कापूचिन कैटाकॉम्ब नामक एक ऐसा कब्रिस्तान है जहां शवों को दफनाया नहीं जाता था बल्कि उनकी ममी बनाकर दीवारों पर लटका दिया जाता था. शवों पर ऐसे रासायनिक पदार्थ लगा दिए जाते थे जिसके कारण वह ना तो खराब होते हैं और ना ही दुर्गंध छोड़ते हैं.
1599 में ब्रदर सिल्वेस्ट्रो ऑफ गूबियो की ममी बनाने के साथ यह सिलसिला शुरू हुआ था. इस कब्रिस्तान की कहानी जितनी डरावनी है यहां पहुंचने का रास्ता भी बहुत भयानक है. कोई कमजोर दिल का व्यक्ति शायद अपने जीवन में यहां जाने की कल्पना भी नहीं कर सकता.
एक अंधेरे रास्ते से गुजरती सीढ़ियां आपको इस कब्रिस्तान तक पहुंचाती हैं. कब्रिस्तान के दरवाजे पर साफ तौर पर लिखा गया है कि यहां आने वाले, अपनी सभी उम्मीदें छोड़ दें जिसे पढ़कर आप वापिस जाने का विचार भी बना सकते हैं. कब्रिस्तान के भीतर सैकड़ों शरीर दीवारों पर टंगे हैं. कुछ तो आपकी ओर ऐसे देख रहे हैं जैसे आपको जीवित देखकर उन्हें अच्छा नहीं लग रहा.
उल्लेखनीय है कि इस कब्रिस्तान में शवों को उनके सामाजिक दर्जे और स्थान के आधार पर जगह दी गई है. जो तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक और जातिगत भेदभावों की हकीकत बयां करता है.
सबसे पहला स्थान इस कब्रिस्तान की स्थापना करने वाले संतों को दिया गया है. संतों के बाद पुरुषों की श्रेणी रखी गई है. सभी पुरुषों ने अपने जमाने के कपड़े पहन रखे हैं. इसके बाद है महिलाओं का सेक्शन, जिसमें कुंवारी कन्याओं की पहचान के लिए उनके सिर पर धातु से बना बैंड पहनाया गया है. यहां प्रोफेसर, डॉक्टर्स और सैनिकों के सेक्शन भी अलग हैं.
हालांकि 1871 में ब्रदर रिकाडरे ने यह परंपरा बंद करवा दी थी. लेकिन वर्ष 1920 में रोसालिआ लॉबाडरे नामक एक बच्ची के शव की भी यहां ममी बनाई गई. बच्ची के शव को बचाए रखने के लिए इस पर कौन सा केमिकल लगाया गया है यह बात अभी तक कोई नहीं जानता. 1920 में जिस बच्ची का देहांत हो गया आज भी उसे देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि यह जीवित नहीं है. इसलिए इस ममी का नाम स्लीपिंग ब्यूटी रख दिया गया है.
हो सकता है आप में से कुछ लोग इस कब्रिस्तान को देखने के लिए योजना बना रहे हों लेकिन यहां जाने के लिए आपको बहुत हिम्मत और मानसिक रूप से दृढ़ रहना बहुत जरूरी है.
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