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रामायण और गीता का युग फिर आने को है

गलियों में तब शायद शुद्ध मंत्रोच्चार की ध्वनि गूंजेगी. लोग तब संस्कृत के पंडित ढूंढ़ने के लिए भटकेंगे नहीं क्योंकि शायद गीता और रामायण के उस युग में संस्कृत के ज्ञानियों की कमी नहीं होगी. तब पंडित कहलाने वालों के वैदिक ज्ञान पर शक की ऊंगली नहीं उठेगी, न ही ज्ञानी कहलाने के लिए एक उम्र गुजर जाने और बूढ़े होने का इंतजार करना होगा. वैदिक ज्ञान का प्रकाश तब आम बात होगी.


शिक्षा और तकनीक को आज सबसे जरूरी चीज मानने वाले शायद इस खबर पर थोड़ी त्योरी चढ़ाएं लेकिन रामायण और महाभारत भी अब युवाओं की जरूरत और संभावनाएं बनेंगे. धार्मिक इतिहास को धर्मग्रंथों में होने और दादी-नानी की कहानियों, साधु-महात्माओं के प्रवचनों में सुनने के अलावा अब खासकर युवा इसमें अपना भविष्य बनाएंगे…और यह सब एक बार फिर होगा शिक्षा का गौरवपूर्ण इतिहास रखने वाली पाटलिपुत्र की धरती पर.


रामायण और गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों की कहानियां सुनना या धार्मिक टीवी सीरियल्स देखना लगभग हर किसी को पसंद आता है. पर रामायण, महाभारत और गीता जैसे धार्मिक ग्रंथ पढ़ना हर किसी को न पसंद होता है, न आज की व्यस्त दिनचर्या में किसी के लिए यह संभव है. कभी गुरुकुलों की परंपरा से विद्यार्जन का आरंभ करने वाले आर्यावर्त में तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय का अतुलनीय उच्च कोटि का शैक्षिक इतिहास है. उस शिक्षा व्यवस्था में वेद-शास्त्रों के अलावा व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद) आदि भी पढ़ाए जाते थे. मतलब अपने पुराने काल में भी हम एक उच्च आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से जुड़े थे. रहन-सहन और व्यावहारिक उपयोग में आधुनिकता के आ जाने तथा तकनीक और विज्ञान से जुड़ने के बाद हमारी शिक्षा और उसकी धारा में भी बदलाव आए. योग, धर्म, शास्त्र आदि इनमें कहीं नहीं रहे. आज रामायण और महाभारत पढ़ना हर किसी के वश की बात नहीं, इसे पढ़ने वाले महाज्ञाता माने जाते हैं. पर एक बार फिर पाटलिपुत्र में योग और धर्म अध्ययन का विस्तार होने जा रहा है. वह भी बड़े स्तर पर विश्वविद्यालय की पढ़ाई और डिग्री के साथ! विश्वविद्यालय स्तर पर यहां न सिर्फ रामायण, गीता जैसे धार्मिक ग्रंथ पढ़ाए जाएंगे बल्कि इसमें देश-विदेश में रोजगार भी उपलब्ध होगा.


आधुनिक शिक्षा की वकालत करने वाले शायद यह पढ़कर डर जाएं कि कहीं विश्वविद्यालयों में आवश्यक रूप से अब रामायण और गीता तो नहीं पढ़ाए जाने वाले! जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं होने वाला लेकिन हां, पटना से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिद्दूपुर, वैशाली में एक विश्वविद्यालय जरूर खोला जा रहा है जहां रामायण, गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों की पढ़ाई होगी. साथ ही रामायण आदि हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों से जुड़े शोध कार्य भी यहां किए जा सकेंगे. 5 साल के इस कोर्स में एस्ट्रोफीजिक्स, एस्ट्रॉनोमी, हिंदू माइथॉलोजी, वेद, उपनिषद संस्कृत, हिंदी, अन्य भारतीय तथा एशियाई भाषाओं में पढ़ाए जाएंगे. हिंदू ट्रस्ट द्वारा 25 एकड़ में 500 करोड़ की धनराशि से बनाए जाने वाले इस विश्वविद्यालय के लिए पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर के सेक्रेटरी आचार्य किशोर कुणाल निर्माण कार्यभार संभाल रहे हैं. हालांकि अभी तक इसके बनने की कोई समय सीमा नहीं रखी गई है लेकिन आचार्य कुणाल के अनुसार जितनी जल्दी संभव होगा इसका निर्माण कार्य पूरा करने की कोशिश की जाएगी.

चूहा देखकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करें


व्यावहारिक दृष्टिकोण से इसे संभावनाहीन बताने वाले भी इस परियोजना की पूरी जानकारी होने पर इसका विरोध नहीं कर सकेंगे. 2500 विद्यार्थियों के लिए सीटों की व्यवस्था के साथ इस विश्वविद्यालय में सभी आधुनिक सुविधाएं होंगी. साथ ही इसे रोजगारपरक भी बनाया जाएगा. विद्यार्थियों को यहां वाई-फाई की सुविधा भी दी जाएगी और विदेशी भाषाओं से भी उनके ज्ञान को जोड़ा जाएगा. आप सोच में पड़ गए कि धार्मिक ग्रंथों का विदेशी भाषाओं से क्या संबंध! चौंकिए मत! यह नालंदा विश्वविद्यालय की धरती है. ह्वेन सांग जैसे चीनी यात्री भी यहां आकर इसकी महिमा का गुणगान कर चुके हैं. इस विश्वविद्यालय में धर्म की इस शिक्षा को वैश्विक स्वरूप देने के लिए रामायण, गीता, ज्योतिष आदि की पढ़ाई हिंदी, संस्कृत के अलावे कई विदेशी भाषाओं में भी कराई जाएगी.


इससे वैश्विक स्तर पर इसके प्रसार के साथ ही तकनीक-सुलभ धर्म ज्ञान प्रशिक्षुओं को मिल सकेगा. साथ ही धर्म से जुड़े इन प्रशिक्षुओं के लिए वैश्विक रोजगार की संभावनाएं भी उपलब्ध होंगी. यहां धार्मिक रीति-रिवाजों, पूजा-पाठ आदि संपन्न कराने के लिए भी प्रशिक्षण दिया जाएगा. तो अगर आप ढोंगी बाबा या अल्पज्ञान पंडितों से तंग आ गए हैं तो कुछ वर्षों का इंतजार कीजिए…हो सकता है जैसे लोग हॉवर्ड और ऑक्सफोर्ड की डिग्री दिखाकर अपने ज्ञान का सबूत देते हैं, इससे निकले प्रशिक्षु भी इससे पढ़ा पंडित होने का मार्क लेकर घूमें. आपको शायद तब उनके पांडित्य पर यकीन आ जाए लेकिन जनाब ये एमबीए धारकों की तरह महंगे पंडित भी हो सकते हैं! तो इंतजार करें! ब्रांडेड पंडित अब बस आने ही वाले हैं!

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