आपकी पहचान कैसी भी है आपकी पहचान है. आप उसी से जाने जाते हैं और उसे किसी भी हाल में खोना नहीं चाहते. लेकिन रातोंरात आपकी सूरत बदल जाए वह भी आपकी सूरत में आपका नौकर और नौकर की सूरत में आप आ जाएं तो वह मंजर आप खुद सोच सकते हैं किसी के लिए कितना भयावह होगा. आप, आप होकर भी सबके लिए बाहरी इंसान होगे. इससे भी बड़ी बात कि आपकी जगह कोई बाहरी इंसान आपके परिवार का प्यारा बन गया होगा. ऐसे हालातों की कल्पना भी शायद आपको दर्दनाक और डरावनी लगे लेकिन किसी के साथ जब ऐसी कोई बात हो जाए तो वह क्या करे. इस बेचारी औरत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब लेकिन अपनी मेहनत से इसने अपनी पहचान वापस पाई. लेकिन क्या यह संभव है? आखिर कैसे किया इसने यह सब?
बड़ी पुरानी कहानी है. वीरव्रती नाम था उसका. किसी राज्य की राजकुमारी थी वह. अपने पांच भाइयों की इकलौती और लाडली बहन. जब बड़ी हुई भाइयों ने लाड़-प्यार से पाली इस बहन बहन का विवाह किसी राज्य के राजा से किया. अब उनकी बहन किसी राज्य की रानी थी. वीरव्रती अपने मायके के लाड़ से अलग होकर थोड़ी दुखी हुई लेकिन पति के प्यार ने उसे वापस खुशी दे दी.
इसी तरह दिन गुजरते रहे और करवा चौथ का व्रत आ गया. वीरव्रती अपने भाइयों के पास आई थी. वहीं उसने करवा चौथ अक निर्जला व्रत रखा. पर नाजों से पली वीरव्रती पूरे दिन का यह उपवास सहन न कर सकी और शाम ढ़लने से पहले ही प्यास के मारे बेहोस हो गई. भाइयों से बहन का यह दर्द देखा ना गया. उन्होंने वीरव्रती से उपवास तोड़ने का आग्रह किया लेकिन वीरव्रती ने चांद देखे बिना इसे तोड़ने से इनकार कर दिया. आखिर्कार भाइयों ने एक युक्ति सोची. दूर पहाड़ के पीछे उन्होंने एक बड़े मैदान में आग लगाई. आग कुछ इस जलाई गई थी कि दूर से देखने वालों को यह चांद सा दिखता था. भाइयों ने वीरव्रती को चांद बताकर वह आग दिखाई और व्रत तुड़वा दिया.
यहां तक तो सब सही था लेकिन जैसे ही व्रत तोड़कर वीरव्रती खाने बैठी उसे अपने पति की मौत का समाचार मिला. वीरव्रती इस असाध दुख से भयभीत हो अपने घर गई तो वहां उसे शिव और पार्वती मिले. उन्होंने उसे बताया कि उसने व्रत को बिना पूरा किए तोड़ दिया इसीलिए उसके पति की मौत हो गई और आग की कहानी बताई. वीरव्रती की बहुत मिन्नतों पर शिव-पार्वती उसके पति को जीवित लौटाने को राजे हो अगे लेकिन शर्त यह थी कि वह हमेशा बीमार रहता. वीरव्रती मान गई. और इसके बाद जब वह महल गई तो उसका पति वहां था लेकिन उसके शरीर में असंख्य कीलें थी.
वीरव्रती अपने पति के इस दुख से बहुत डर गई लेकिन करवा चौथ का व्रत पूरा करके उसने अपने पति को इस दुख से मुक्ति दिलाने का फैसला किया. उसने दुबारा करवा चौथ का व्रत किया और पूजा के लिए मंदिर गई. लेकिन मंदिर से आकर उसने देखा कि उसके पति तो ठीक हो गए हैं लेकिन उसका चेहरा अपनी नौकरानी के चेहरे में बदल गया है और नौकरानी उसकी तरह दिख रही है. इस तरह उसे सभी नौकर समझ रहे थे और उसी तरह बर्ताव ही कर रहे थे और नौकरानी रानी की तरह राजा के साथ रहने लगी. रानी इससे बहुत दुखी हुई लेकिन वह कुछ कर नहीं सकती थी.
इसी तरह दिन बीतने लगे. एक बार राजा युद्ध पर जाने लगे. नौकरानी के वेश में रानी ने राजा से आरती करने की विनती की. राजा मान गए. आरती करते हुए रानी बार-बार बोलती रही, “रोली की गोली हो गई और गोली की रोली हो गई”…इस तरह आरती करते-करते रानी बनी नौकरानी फिर से नौकरानी बन गई और नौकरानी बनी रानी वापस रानी बन गई. राजा ने ‘रोली की गोली हो गई और गोली की रोली हो गई’ गाने का कारण पूछा तो रानी ने उसे सारी कहानी बयान कर दी. इस तरह रानी को इस पंजाबी कथा के अनुसार वीरव्रती रानी ने करवा चौथ के दिन अपने पति को दुबारा पाया.
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