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हर तरफ सोना ही सोना बिखरा पड़ा है

सोना एक ऐसी चीज है जो हर किसी को लुभाती है. हर कोई धनवान बनाना चाहता है. हर कोई सोना खरीदना और सहेजकर रखना चाहता है. पर यूं ही किसी को नहीं मिलता सोना. महिलाओं का श्रृंगार है यह. हर बेचने और खरीदने वाले की संपत्ति है. बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है एक छोटा टुकड़ा सोना खरीदने के लिए. हालांकि कुछ भाग्यशाली ऐसे भी हैं जिन्हें जरूरत नहीं, फिर भी उनकी जिंदगी सोने से शुरू और सोने पर ही खत्म होती है. हम बात कर रहे हैं भारत में उस जगह की जहां जरूरत नहीं है, फिर भी हर तरफ सोना ही सोना बिखरा पड़ा है.


दक्षिण भारत के मंदिर अपनी उत्कृष्ट संरचना के लिए पहचाने जाते हैं. इसी कड़ी में विश्व प्रसिद्ध मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर दुनिया भर में अपनी खूबसूरती के कारण प्रचलित है. उल्लेखनीय है कि इस मंदिर की प्रसिद्धि बस इसकी सुंदरता पर ही निर्भर नहीं है बल्कि इस मंदिर में मौजूद अनमोल और बहुमूल्य आभूषण हमेशा दर्शकों को आकर्षित करते हैं. यहां कई दुर्लभ और पुरातन काल से संबंधित आभूषण आज भी सहेज कर रखे हुए हैं.


मंदिर में आयोजित होने वाले चिथ्थिराई आयोजन के आठवें दिन देवी को हीरे-जवाहरात से जड़ा मुकुट पहनाया जाता है जिसे रायार कहते हैं. इसके अलावा भक्तों और विभिन्न ट्रस्टों द्वारा सोने और हीरे के आभूषण भी देवी को भेंट किए जाते हैं.

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मीनाक्षी मंदिर की महिमा और मान्यता इस बात से ही जाहिर होती है कि हाल ही में एक दंपत्ति ने मंदिर की देवी मीनाक्षी अम्मल को डेढ़ करोड़ रुपए का एक हीरों से जड़ा मुकुट भेंट किया. मंदिर से जुड़े लोगों के अनुसार सुब्बैया छेत्तियार और उनकी पत्नी सरोजा अच्छी ने मीनाक्षी देवी को 1.5 किलो सोने,  तीन सौ कैरेट हीरे,  154 कैरेट पन्ना और रबी से सजा एक मुकुट (रायार) चढ़ाया है.


जानकारों के अनुसार 500 वर्ष पूर्व राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल में मीनाक्षी देवी को बेशकीमती रायार भेंट किया था. इस रायार की विशेषता यह थी कि इसे तैयार करने में 197 किलो सोने, 332 मोतियों, 920 रबी पत्थर, 78 हीरे, 11 पन्ना, सात नीलम और आठ पुखराज पत्थरों का प्रयोग किया गया था.


मुगलों के शासनकाल में तैयार एक बहुमूल्य रायार आज भी मीनाक्षी मंदिर की शोभा बढ़ा रहा है. इस बहुमूल्य मुकुट को 164 किलो सोने, 332 मोतियों, 474 लाल पत्थर, 27 पन्ना और अति दुर्लभ 158 पलच्छा हीरों के उपयोग से बनाया गया था.

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मीनाक्षी देवी की अराधना करने वाले लोगों की कोई कमी नहीं है. बल्कि इनकी पूजा अर्चना करने वालों में बहुत से लोग अत्याधिक धनवान हैं. साक्ष्यों के अनुसार वर्ष 1963 में भी एक अमीर दानवीर ने मंदिर में 3345 हीरों, 4100 लाल पत्थरों और रूबी पत्थर से सुसज्जित 3500 ग्राम वजन का मुकुट भेंट किया था.


वैसे अगर भारत के धार्मिक संस्थानों की पूंजी को जोड़ा जाए तो यह एक भारी धनराशि बन जाएगी. शायद इतनी बड़ी जिससे मौजूदा गरीबी और कुपोषण जैसी समस्याओं को हल करना बहुत सरल हो जाए.

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