वह अमेरिका की पहली ऐसी औरत थी जिसकी मौत टायफाइड की वजह से हुई थी. लेकिन वहां के लोगों को लगता है कि वह मरी नहीं बल्कि आज भी रूह बनकर उसी अस्पताल में भटकती है जहां कभी उसकी मौत हुई थी. यही वजह है कि उसकी मौत के बाद भी लोग उसे पहचानते हैं और अमेरिका की रहने वाली मैरी मेलन को लोग टायफाइड मैरी के नाम से बेहतर जानते हैं.
मैरी को टायफाइड से ग्रसित होने के बाद एक आइलैंड पर स्थित अस्पताल में भेज दिया गया था जहां उसकी मृत्यु हो गई थी. आइलैंड पर आने वाले लोगों का कहना है कि यह स्थान श्रापित है, उन्हें यहां से लोगों के चीखने और दर्द से चिल्लाने की आवाजें आती हैं लेकिन इस स्थान पर एक परिंदा तक ‘पर’ मारने की हिम्मत नहीं करता.
उल्लेखनीय है कि टायफाइड जैसी घातक बीमारी को वर्ष 1906 में पहचान मिलने लगी थी और वर्ष 1907 में जब स्थानीय स्वास्थ्य कर्मचारी अपने रूटीन शेड्यूल के तहत घर-घर जाकर लोगों के स्वास्थ्य की जांच करने गए तो उन्होंने मैरी को पहली नजर में तो फिट ही पाया लेकिन किसी को यह समझ नहीं आया कि मैरी के शरीर में टायफाइड घर कर चुका है और जबकि टायफाइड संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है तो मैरी से होते हुए यह बीमारी उसकी बेटी और जिस घर में मैरी रसोइये के तौर पर काम करती थी उस घर की मालकिन को भी इस बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया.
इसी तरह जिस घर में मैरी काम करती थी उस घर में रहने वाले 11 लोगों में से 6 को टायफाइड हो गया और मैरी का शरीर पूरी तरह संक्रमित हो चुका था इसीलिए मैरी को एक अकेले नॉर्थ ब्रदर आइलैंड पर भेज दिया गया. वहां उसे एक ऐसे अस्पताल में रखा गया जहां किसी भी तरह की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी और अकेलेपन और सुविधाओं के अभाव में तरस-तरस कर मैरी ने दम तोड़ दिया. आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन मैरी की वजह से और 51 लोग भी टायफाइड की चपेट में आ गए थे. इस अस्पताल में कई मौतें हुईं और सभी की वजह टायफाइड बीमारी ही थी. वर्ष 1963 में इस अस्पताल को सिर्फ इसीलिए बंद कर दिया गया क्योंकि लोगों को यह स्थान एक भूतहा स्थान लगने लगा था.
अब इस कब्रिस्तान में किसी मुर्दे को दफनाया नहीं जाता
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