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आखिर क्यों समलैंगिकों से डरता था इटली का तानाशाह

समलैंगिकों के प्रति समाज का नजरिया हमेशा से ही कुछ विचित्र रहा है. अगर हम ऐसा मानते हैं कि भारत समेत एशियाई देशों में ही समलैंगिकों और ट्रांसजेंडरों को घृणित नजरों का सामना करना पड़ता है तो आपकी जानकारी थोड़ी अधूरी है. इतना ही नहीं अगर आप सोचते हैं कि वैश्वीकरण के कारण ही समलैंगिकता को बढ़ावा मिला है तो भी आपको अपने सामान्य ज्ञान में भी थोड़ी बढ़ोत्तरी करने की आवश्यकता है क्योंकि जो सच हम आपको बताने जा रहे हैं वह थोड़ा अलग जरूर है लेकिन सच अलग चाहे कितना हो लेकिन वह होता तो सच ही है.




फासीवाद का गढ़ यूरोपियन देश इटली एक ऐसा स्थान है जहां आज से 70 साल पहले एक फरमान के तहत जितने भी समलैंगिक वहां मौजूद थे या जितने भी लोगों पर समलैंगिक होने का शक होता था उन्हें तड़ीपार कर एक सुनसान टापू पर भेज दिया जाता था ताकि अन्य लोगों पर उनका असर ना पड़े.



बेनिटो मुसोलिनी का वो दौर जिसमें इटली अपनी साख, अपनी मर्दानगी भरे गुणों को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित था उस समय अगर मुसोलिनी को जरा भी भनक लगती थी कि उसके देश में मर्दानगी को तार-तार करते हुए समलैंगिक संबंधों का अनुसरण हो रहा है तो वह उस व्यक्ति को देश निकाला देकर एक सुनसान टापू, जहां किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं होती थी और ना ही रहन-सहन ही सही प्रकार से हो पाता था, भिजवा दिया करता था.


अब इस कब्रिस्तान में किसी मुर्दे को दफनाया नहीं जाता


एड्रियाटिक सागर में स्थित त्रेमिती द्वीप समूह ऐसा ही एक स्थान है जिसका इस्तेमाल 1930 के दशक में फासीवादी सरकार इटली में मौजूद समलैंगिकों के दमन के लिए करती थी. जैसे-जैसे समय बीतता गया और वैश्वीकरण के तहत सरकारों का उदय होने लगा वैसे-वैसे समलैंगिकों के प्रति ऐसे बर्ताव में कमी आने लगी और आज यह द्वीप एक ऐतिहासिक स्थल के तौर पर जाना जाने लगा है.


उसने अपनी खूबसूरती की कीमत एक वेश्या बनकर चुकाई

इतिहासकारों की मानें तो इटली के शासक बेनिटो मुसोलिनी ने इटली की छवि एक मर्दाना राष्ट्र के तौर पर पेश की हुई थी और ऐसे मर्दाना देश में समलैंगिकों का होना इटली की छवि को नकारात्मक रूप से आहत करता था. मुसोलिनी यह मानता था कि इटली जैसे देश में समलैंगिक हो ही नहीं सकते लेकिन अगर ऐसा है तो इन्हें इटली में रहने का कोई अधिकार नहीं है.



हाल ही में इस द्वीप पर ट्रांसजेंडरों और समलैंगिकों के हितों के लिए काम कर रहे मानवाधिकार संगठनों की ओर से यहां इस शर्मनाक घटना की स्मृति में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसमें समलैंगिकों और मानवाधिकार संगठनों के स्वयंसेवकों ने भाग लिया था.


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