ये कहानी मुझे मेरी मां ने सुनाई थी. मेरी मां एक छोटे से शहर से संबंध रखती हैं और ऐसा माना जाता है कि उस गांव में कुछ बुरी शक्तियां भी वास करती हैं. ऐसी ही एक बुरी आत्मा से सामना हुआ मेरे नानाजी का. वह चुड़ैल थी, खुले बालों और सफेद भयानक चेहरे वाली चुड़ैल.
ठंड का समय था…..शहर में घना कोहरा छाया हुआ था. मेरे नाना एक बड़े अधिकारी थे. रोज की तरह उस दिन जब मेरे नाना अपना काम खत्म कर दफ्तर से घर की ओर जाने लगे तो रास्ते में पड़ने वाले बाजार से वह कुछ सामान लेने के लिए रुके. उनके बाकी साथी आगे चले गए और वो पीछे छूट गए.
सामान लेते-लेते उन्हें टाइम का पता ही नहीं चला और जब नानाजी ने अपनी घड़ी देखी तो टाइम देखकर उन्हें लगा कि आज घर पहुंचने में बहुत देर हो जाएगी. उन्होंने सोचा जंगल के रास्ते अगर जाऊं तो जल्दी पहुंच जाऊंगा इसीलिए उन्होंने जंगल की ओर गाड़ी घुमा ली. काफी अंधेरा हो गया था. नानाजी तेज गति के साथ गाड़ी चला रहे थे लेकिन उनकी गाड़ी के एक आगे एक औरत आ गई. उन्हें झटके से ब्रेक मारनी पड़ी. जो औरत गाड़ी के सामने आई थी वह तेज-तेज रो रही थी.
नानाजी को लगा कि वह जरूर किसी मजदूर की पत्नी होगी जो रास्ता भटक गई है. रास्ता सुनसान था इसीलिए उन्होंने सोचा कि इस महिला की मदद की जाए. उन्होंने उस औरत से पूछा कि वह यहां अकेले क्या कर रही है? उसने कोई जवाब नहीं दिया और जोर-जोर से रोने लगी. ऐसा लग रहा था मानो सारा जंगल उसकी आवाज से गूंज रहा हो. नानाजी ने पूछा कि उसका घर कहां है, तो भी वह कुछ ना बोली.
नानाजी ने उसे बोला कि तुम मेरे साथ मेरे घर चलो सुबह तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा. वह नानाजी के साथ चलने के लिए तैयार हो गई और गाड़ी के पीछे वाली सीट पर बैठ गई.
रीति-रिवाज के कारण उसने अपने सिर पर घूंघट डाल रखा था जिसकी वजह से उसका चेहरा छिपा हुआ था. गाड़ी पर सब नानाजी का इंतजार कर रहे थे जैसे ही गाड़ी की आवाज आई सब भाग कर इकट्ठा हो गए.
जब उस महिला के बारे में घर में पूछा गया तो नानाजी ने सारी कहानी बताई. नानाजी ने कहा आज खाना यही बना देगी. लेकिन मेरी मां को उस महिला पर शक हो गया. उन्हें लगा कि यह कोई चोर है जो घर का सामान चुराकर भाग जाएगी. मां ने उसे रसोई में जाकर खाना बनाने को कहा, वह बिना कोई जवाब दिए वहां से चली गई. रसोई में से अजीब से आवाजें आ रही थीं बस.
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रसोई में सारा सामान रखवा कर मेरी मां ने उसे कहा कि सब भूखे हैं इसीलिए जल्दी खाना बना दे. उसे रसोई में भेज तो दिया लेकिन मां का मन अभी भी शांत नहीं हुआ. 10 मिनट बाद मां रसोई में पहुंची तो देखा अभी वह थैले में से मछलियां निकाल ही रही थी. यह देखकर मां को गुस्सा आ गया. उन्होंने उसे बोला कि अभी तक तुमने खाना बनाना शुरू नहीं किया, कब बनेगा और कब हम खाएंगे.
उस महिला का चेहरा अभी भी ढका हुआ था इसीलिए किसी ने उसका चेहरा नहीं देखा था. मां उसका चेहरा देखने की कोशिश करती रही लेकिन उन्हें उसकी झलक भी दिखाई नहीं दी. मां ने कहा कोई जरूरत हो तो बुला लेना लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बोली. उन्हें लगा कि शायद अंजान लोगों से डर रही होगी. मां रसोई से चली गई लेकिन जब 10 मिनट बाद वह फिर वापस आई तो रसोई का दृश्य देखकर मां डर गई. उनके पैर जैसे वहीं जम गए. उनके गले की आवाज नहीं निकल रही थी.
उन्होंने देखा वह औरत रसोई के स्लेप पर बैठकर कच्ची मछलियां खा रही है. सारी रसोई में हड्डियां और मांस के टुकड़े बिखरे पड़े हैं.
उसके सिर का घूंघट भी उतरा हुआ था, उसका चेहरा बेहद खौफनाक था. बाल बहुत बड़े और नाखून एक दम काले. वह मछलियां खाने में मगन थी इसीलिए उसका ध्यान मां पर नहीं गया. मां भी चिल्लाई नहीं कि कहीं वह और ज्यादा खतरनाक न हो जाए.
मां ने एक थाल उठाया और वह चूल्हे में से जलता हुआ कोयला उठाकर उसकी तरफ दौड़ी.
उसे आज भी वह औरत दिखाई देती है….
कोयला उस चुड़ैल पर फेंक दिया, आग की जलन की वजह से वह डायन तेज-तेज आवाजें निकालने लगी. उसकी आवाज सुनकर सारा घर इकट्ठा हो गया.
उसे आग दिखाकर घर से बाहर निकाला गया. उसकी आवाज इतनी तेज थी कि आसपास के लोगों का भी बाहर जमावड़ा लग गया. वह डायन लोगों की भीड़ को हटाते हुए जंगल की तरफ दौड़ी, सारे लोग डर के मारे कांप रहे थे और मेरी मां की हिम्मत की दाद भी दे रहे थे कि अगर उन्होंने सही समय पर कोयले से उस डायन को भगाया नहीं होता तो ना जाने क्या हो जाता.
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