पांच हजार साल पुरानी एक ऐसी कहानी जिसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे. कहते हैं चेनाब नदी का बहाव अन्य किसी भी नदी से बहुत तेज है. तो फिर क्या कारण है कि वह चलती तो लहराती है लेकिन उसका शोर किसी को सुनाई देता? चेनाब नदी को लोग तेज रफ्तार से बहने वाली नदी के तौर पर जानते हैं लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि वो बहती तो है लेकिन इतने शांत तरीके से कि किसी को भी उसकी आवाज सुनाई नहीं देती?
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इस सवाल का जवाब हमारे इतिहास के पन्नों में दर्ज है. महाभारत काल में हुए कौरव-पांडव युद्ध के बारे में तो आपने सुना ही होगा. इस दौरान पांडवों को मिले अज्ञातवास के विषय में भी आप सभी जानते होंगे. लेकिन शायद आप यह नहीं जानते कि इस अज्ञातवास के दौरान कुछ ऐसा घटित हुआ था जिसने चेनाब से उसका शोर, उसकी आवाज सब कुछ छीन लिया था.
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कई दिनों तक भटकने के बाद पांडव एक गुफा में आए. जब उन्हें पता चला कि यह इलाका राजा विराट का है तो उनके पास वेष बदलकर रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा. वेष बदलकर वह राजा विराट के पास नौकरी मांगने पहुंचे. जब पांडव राजा के दरबार में पहुंचे तो राजा विराट ने उन्हें देखते ही पहचान लिया कि यह अति बलशाली पांडवों की सेना है जो कौरवों से मिली शिकस्त के बाद अज्ञातवास में रहने के लिए विवश है. सब कुछ जानने और समझने के बावजूद राजा विराट कुछ नहीं बोले.
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विराट पांडवों को अपने यहां नौकरी पर रखने के लिए राजी हो गए और सौ हाथियों की ताकत लिए भीम को रसोई में खाना पकाने का काम सौंपा गया.
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दिनभर खाना बनाने, सब्जी काटने जैसे काम करने के बाद भीम चेनाब के किनारे तपस्या करने चले जाते. उनकी इस तपस्या के बारे में राज्य का कोई अन्य व्यक्ति क्या खुद उनके अपने भाई ही नहीं जानते थे. यहां तक कि नगर के राजा विराट भी यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर शाम ढलते ही भीम कहां चले जाते हैं, जाहिर है उनसे पूछने की हिम्मत तो किसी की थी नहीं इसीलिए राजा भी अपनी जिज्ञासा का समाधान नहीं ढूंढ़ पा रहे थे.
भीम की तपस्या के साथ ही शुरू हुई चेनाब नदी की शांत दास्तां जिसे सुनकर आपको यह एहसास हो जाएगा कि महाबली भीम का गुस्सा कितना खतरनाक था.
अखनूर (जम्मू) में चेनाब नदी के किनारे स्थित किले में एक गुफा है जिसमें एक गाय और छोटे बच्चों के पैरों के निशान दिखाई देते हैं, जिनका संबंध कौरवों के उसी अज्ञात वास से है जिसका जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं. इन गुफाओं के अंदर जो दस्तावेज मिले हैं वह ऐतिहासिक दृष्टि से आज भी बेहद महत्वपूर्ण हैं.
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पुराने और कटे-फटे दस्तावेजों में भीम की तपस्या और चेनाब की शांति से जुड़ी एक कहानी दर्ज है और वह यह कि जब अज्ञातवास के दौरान पांडव नौकरी करने लगे तब उन्हें नौकरी में तो दिक्कत नहीं आई लेकिन भीम जब तपस्या करने जाते तो उन्हें बहुत दिक्कत आती थी और वह भी सिर्फ चेनाब के शोर की वजह से.
भीम चाहते तो एक ही बार में अपनी इस परेशानी को भी हल कर सकते थे लेकिन वह डरते थे कि अगर उनका राज खुल गय तो अज्ञातवास की सीमा और ज्यादा बढ़ जाएगी इसीलिए भीम को अपना गुस्सा शांत रखना पड़ता था.
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समय ऐसा ही गुजरता रहा और भीम का क्रोध भी दिनोंदिन बढ़ने लगा. लेकिन एक दिन जब भीम अपनी तपस्या में लीन थे तो उसी समय चेनाब तेज आवाज के साथ बहने लगी. भीम की तपस्या बाधित हुई. भीम ने शांतिपूर्वक पहले चेनाब को बोला कि वह बहते हुए इतना शोर ना करे क्योंकि इससे उनकी तपस्या में खलल पड़ता है.
वह हर संभव प्रयत्न करते रहे कि उन्हें क्रोध ना आए क्योंकि क्रोध आ जाने पर उनका राज खुल जाता. वह चेनाब से मिन्नतें करते रहे और चेनाब उनकी एक मानने को तैयार नहीं हुई. इसके विपरीत भीम जितना चेनाब से शांत रहने को कहते वह उतना ज्यादा ही शोर करती.
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जब भीम से सहन नहीं हुआ तो वह अपनी जगह पर खड़े होकर इतना तेज गरजे कि चेनाब की लहरें शांत हो गईं और कहते हैं तब से लेकर अब तक चेनाब बहती तो है लेकिन शांत गति से.
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