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प्रेतों और पिशाचों की अदालत लगती है यहां !!

बिखरे हुए बाल, बेढंगे कपड़े और दुनियादारी की परवाह ना करते हुए मनचाहे तरीके से बर्ताव करना. अपने नाजुक से शरीर पर भारी-भारी पत्थर रखकर खुद को यातनाएं देना और साथ ही अपने शरीर को मजबूत कड़ियों से बांधकर रखना. तेज आवाज में अपने आप से ही कुछ कहना और बिना वजह खुद को ही डांटना !!!


mysteriousउपरोक्त पंक्तियां पढ़कर आपको कुछ अजीब सा अहसास तो जरूर हुआ होगा. लेकिन आप शायद यह समझ नहीं पा रहे होंगे कि आखिर कोई व्यक्ति ऐसा क्यों करेगा, कोई क्यों खुद को इतनी परेशानियों में डालेगा?


अगर आप अभी तक यह सोचते हैं कि गलतियां इंसान से होती हैं, तो आपको यह भी जान लेना चाहिए कि कुछ गलतियां ऐसी भी होती हैं जो केवल मरने के बाद ही की जाती है और वो गलतियां है शरीर छोड़ने के बाद भी इंसानी दुनिया में प्रवेश करने की गलती और इसी गलती का जब दंड मिलता है तो हालात ऐसे ही होते हैं जो ऊपर वर्णित हैं.

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जब-जब कोई प्रेत इंसानों की दुनिया में प्रवेश करने की गलती करता है उसे दौसा (राजस्थान) स्थित प्रेतराज के दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया जाता है. महंदीपुर बालाजी के नाम से विख्यात इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है जो अपनी-अपनी परेशानियों का समाधान ढूंढ़ने के लिए बालाजी के दरबार में आते हैं.

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कहते हैं यहां आने वाला हर व्यक्ति जो पारलौकिक शक्तियों की चपेट में है, वह प्रेतराज के दरबार में हाजिरी लगाकर खुद को आजाद करवा सकता है. वे लोग जो पिशाचों के इंसानी दुनिया में कदम रखने जैसी बातों पर विश्वास करते हैं, उनका मानना है कि जिन लोगों को ऊपरी ताकतें परेशान करती हैं उन सभी ताकतों का हिसाब-किताब बालाजी के इस मंदिर में होता है.


आप सोच रहे होंगे कि बालाजी के मंदिर में भूतों की अदालत लगने का क्या अर्थ है. तो हम आपको बता दें कि जिस प्रकार सामान्य कचहरियों में इंसानों को अपना पक्ष रखने और अपराध करने के कारण कहने का मौका दिया जाता है उसी तरह इस मंदिर में भी भूत-प्रेतों से संबंधित व्यक्ति को परेशान करने और उनका पीछा ना छोड़ने के कारण पूछे जाते हैं. यहां तक कि पिशाचों से उनकी अंतिम इच्छा पूछने का भी प्रावधान है.


महंदीपुर बालाजी का यह मंदिर जयपुर से लगभग 99 किलोमीटर दूर है. उल्लेखनीय है कि यह धाम बालाजी के तीन रूपों श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री भैरव देव के लिए प्रसिद्ध है., यह तीनों मूर्तियां स्वयंभू हैं जो अपने आप ही अवतरित हुई हैं.

महंदीपुर बालाजी से जुड़ी कथा

कहते हैं आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले अरावली पर्वत की एक घाटी में तीन दिव्य छवियों के दर्शन हुए और उसके अगले ही दिन एक प्रमुख स्थानीय मंदिर के 11वें महंत श्री गणेश पुरी जी महाराज के पूर्वजों को श्री बालाजी ने सपने में आकर तीन रूपों में दर्शन देकर एक चमत्कारी मंदिर को बनवाने की ओर संकेत दिया. जैसे ही महंत जी ने अपनी आंखें खोली वैसे ही उन्हें एक देव वाणी सुनाई दी और बालाजी ने एक दिव्य स्थान के बारे में स्वयं उन्हें बताया, जहां वे तीनों मूर्तियां विराजमान थीं. महंत जी आदेश पाकर उस स्थान पर पहुंचे और तभी से सेवा पूजा शुरू कर दी.


उल्लेखनीय है कि मंदिर बनने से पहले यह स्थान घना जंगल हुआ करता था यहां कई जंगली जानवर भी रहते थे.


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महंदीपुर बालाजी के मंदिर की विशेषता


बालाजी महाराज हर संकट दूर करते हैं. वे लोग जो बुरी आत्माओं  और काले जादू की चपेट में आकर शारीरिक या मानसिक रूप से परेशान रहने लगते हैं, उन्हें यहां आकर राहत मिलती है. लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि यहां सिर्फ वे लोग ही आते हैं जो शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हैं तो आपको यह भी जान लेना चाहिए कि भगवान बालाजी केवल ऊपरी संकटों से ही मुक्ति नहीं दिलवाते बल्कि खुशहाली और वैभव भी देते हैं. जानने वाली बात है कि बालाजी की मूर्ति की दाईं ओर से एक जल धारा प्रवाहित हो रही है जो कभी सूखती नहीं है.

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