न्यूक्लियर ताकत बनने की होड़ में आज तमाम देश एक-दूसरे के साथ ऐसी प्रतिस्पर्धा में उलझ गए हैं जिसका कोई अंत नहीं है. खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए आज लगभग हर राष्ट्र ऐसी मिसाइलों को बनाने लगा है जो अन्य देशों की सुरक्षा के लिए अत्याधिक घातक हो सकते हैं.
आज के युग में जब विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अत्याधिक उन्नति हुई है तो ऐसे में खतरनाक हथियारों को बनाना काफी हद तक आसान हो गया है. दूसरे लोगों की तुलना में खुद को अधिक शक्तिशाली प्रदर्शित करने के लिए मनुष्य हमेशा से ही प्रयासरत रहा है. यही वजह है कि हथियारों को आधुनिक और अधिक भयावह बनाने के लिए कोशिशें लगातार की जाती रही हैं. प्रारंभिक समाज में रहने वाले मनुष्य भी खतरनाक हथियारों को बनाने और उनके प्रयोग में दिलचस्पी रखते थे. जो हथियार दुश्मन को सबसे ज्यादा डराता था उसे ही सबसे अधिक खतरनाक और सफल समझा जाता था. इस लेख में हम आपको ऐसे ही कुछ बेहद प्राचीन और खतरनाक हथियारों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिनका नाम ही दुश्मन को डराने के लिए काफी था.
ये हैं प्राचीन दुनिया के बेहद खतरनाक हथियार
नोबकैरी: यह हथियार लकड़ी या धातु की गोलाकार मूठ से जुड़ा एक चाकू की तरह होता था. यह हथियार बेहद खतरनाक था जिसे अफ्रीका की प्राचीन जनजातियों द्वारा प्रयोग में लाया जाता था. इसका इस्तेमाल आज भी बहुत सी जगहों पर किया जाता है.
कैलटॉप: टी.वी पर आपने निंजा फिल्में या सीरियल तो जरूर देखे होंगे. इनमें जिस हथियार का प्रयोग किया जाता है उसे कैलटॉप कहा जाता है. यह बहुत तेज और धारदार हथियार होता है. इस हथियार को आपने जेम्स बॉंड की कई फिल्मों में कार पंचर करने के लिए इस्तेमाल होते हुए भी देखा होगा.
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मॉर्निंग स्टार: मॉर्निंग स्टार नामक इस हथियार को लकड़ी के डंडे पर बॉल जैसी नुकीली कीलें लगाकर बनाया गया है. मध्ययुगीन समाज में इस हथियार का प्रयोग घोड़े पर सवार योद्धा करते थे. इस हथियार को घुमाते हुए अपने दुश्मन के सिर या चेहरे पर प्रहार किया जाता था.
चक्रम: भारतीय पौराणिक काल में भारत में इसहथियार का प्रयोग किया जाता था. लकड़ी के खांचों पर धारदार ब्लेड लगा यह हथियार काफी खतरनाक होता था. इसे दूर से फेंककर दुश्मन पर वार किया जाता था या फिर इसे हाथ में पकड़े हुए भी दुश्मन का सामना किया जाता था. यह प्रमाण भी कई जगह मिले हैं कि इसका सिख समाज में भी प्रयोग किया जाता था. अगर चक्रम सही तरीके से बना है तो यह 100 मीटर दूर से भी घातक साबित हो सकता है.
मॉल: जिस हथौड़े का हम आज प्रयोग करते हैं, उसकी बनावट मॉल नामक हथियार से ही प्रेरित है. इसका उपयोग फ्रेंच लोगों द्वारा किया जाता था. मॉल का इस्तेमाल वास्तविक रूप से हथियार के तौर पर नहीं होता था और न ही किसी औजार के रूप में, लेकिन फिर भी फ्रेंच योद्धा इसका प्रयोग करते थे. इसे प्रयोग में लाने का कोई विशेष तरीका नहीं होता था. इंसान के शरीर के किसी भी हिस्से पर इसके प्रहार से गंभीर चोट लगती है. आमतौर पर योद्धा इसके जरिए शत्रु के सिर, मुंह और पैरों पर प्रहार करते थे.
हंसिया: हंसिया की तरह दिखने वाले इस औजार का प्रयोग आज खेती में किया जाता है. लेकिन उस दौर में यह मात्र हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता था. इसका एरोडाइनैमिक आकार इसे और भी अधिक प्रभावशाली बनाता था. यह इतना अधिक प्रभावशाली था कि इससे हेलमेट पहने व्यक्ति को भी नुकसान पहुंचाया जा सकता था.
ड्रैगन बियर्ड हुक: इस हथियार का प्रयोग चीनी योद्धाओं द्वारा किया जाता था. इस हथियार में धातु के दो हुक होते थे, जो लंबी रस्सी या चेन से बंधे होते थे. दिखने में यह हथियार भले ही छोटा था, लेकिन बेहद प्रभावी था. इसके वार से धमनियों को नुकसान पहुंचता था जिससे शिकार की आसानी से मौत हो जाती थी.
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